26 June 2025

शिक्षा व्यवस्था पर संकट: स्कूल मर्जर, शिक्षकों का भविष्य और संवैधानिक उल्लंघन

 

स्कूल मर्जर को लेकर विभाग के अधिकारियों ने जो हठ अपना रखी है और infrastructure के आभाव में मज़दूर, किसान के नौनिहालों का भविष्य चौपट होने की तरफ़ अग्रसर है उसी बात को लेकर विभाग अब शिक्षकों की छवि धूमिल करने में भी लगा है । विभागीय अधिकारी एवं कूच सोशल मिडिया के कीड़े कह रहे हैं कि शिक्षक क्यों नहीं अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में पढ़ाते हैं तो उसका सच यही है कि infrastructure मज़बूत कीजिये और उसमें पर्याप्त सुविधाओं के साथ शिक्षक उपलब्ध करवाइये हम तैयार हैं हालाँकि अनुच्छेद 309 के विपरीत है ये परंतु नेता/मंत्री अधिकारी बल्कि मेरा कहना ये है कि जो भी सरकार से किसी भी प्रकार की तनख़्वाह ले रहा है उसके बच्चों के लिये सरकारी स्कूलों में पढ़ाई mandatory की जाये, अगले ही दिन सब सुधार हो जाएगा । जो अधिकारी शिक्षकों को अन्य विभागीय कामों में लगाए रखते हैं वे केवल पढ़ायेंगे, जो शिक्षक दूर दराज़ के इलाक़ों में विपरीत परिस्थितियों में कार्य कर रहे होंगे उनके लिए भी सुविधायें उपलब्ध हो जाएँगी, कुल मिलाकर education system पटरी पर आ जाएगा। 


मर्जर मर्जर नहीं ये सीधा स्कूल बंदी है, मैं अब से नहीं जब विद्यालय composite किये जा रहे थे तब से कह रहा हूँ कि ये शिक्षक के लिए हानिकारक है और वही हुआ भी है composite करके प्राथमिक के शिक्षकों से जूनियर में पढ़वाया जाता है जिसका मैं कई बार विरोध करने को बोला। आज भी वही स्थिति है merging होगी अभी चंद विद्यालयों की फिर ये process निरंतर बढ़ता जाएगा और समायोजन के नाम पर आपको घुमाया जाएगा, विद्यालय बंद होते जाएँगे क्योंकि practically बच्चे कम होंगे बढ़ेंगे नहीं, जो अभिभावक आस पास बच्चों को छोड़ने नहीं आते हैं और हमें घुमाते हैं वे दूर तो कहाँ ही भेजेंगे। 


कल समायोजन का आया है उसमें भी 150 से कम छात्र संख्या वाले विद्यालयों में जितने हेड हैं सारे surplus कर दिए हैं और उन्हें option भी दे रहे हैं कि आप चाहें तो जूनियर में सहायक अध्यापक बन जाइये जबकि ये मेरी याचिका में हुए स्टे के आदेश से अलग है, ये किसी भी प्रकार से चाहे वो समायोजन हो या प्रमोशन बिना टेट पात्रता के ये कार्य नहीं कर सकते है। 


इन्होंने शिक्षकों को इतना उलझा दिया है कभी मर्जर को लेकर कभी इस प्रकार के मनमाने समायोजन को लेकर कि शिक्षक समझ ही नहीं पा रहा है कि उसका अस्तित्व क्या है और उसको वास्तव में करना क्या है ? 


संवैधानिक रूप से मर्जर ग़लत प्रक्रिया है और इस प्रकार मनमर्ज़ी जूनियर के सहायक बनाए जा रहे हैं वो भी क़ानूनी रूप से ग़लत है दोनों का ही विरोध होना चाहिए क्योंकि भविष्य में न तो पद रहेंगे (प्रमोशन और ट्रांसफ़र हेतु) और ये कहेंगे बस पढ़ाओ और भागो वो भी तब तक जब तक विभाग से इन्हें benefit मिल रहा है वरना तो आउट्सॉर्सिंग अंतिम हथियार है ही इनका। 


AIR INDIA के तीन सौ पुराने कर्मचारी जिन्हें नज़रंदाज़ किया जा रहा था क्योंकि disinvestment होते ही नये कर्मचारियों को प्रमोशन और तनख़्वाह का अधिक लाभ दिया जा रहा था ने एक साथ leave डालकर अपने फ़ोन बंद करके विरोध किया था जिसमें पच्चीस को suspend किया था परंतु अंत में माँग मान ली गई थी, कुछ ऐसा ही होने जा रहा है, धीरे धीरे शिक्षक आने वाले पाँच सात सालों में कम होते जाएँगे और फिर विभाग कह देगा आउट्सॉर्सिंग से ही काम लो जिसकी शुरुआत UKG का शिगूफ़ा छोड़कर सरकार ने कर दी है। वर्तमान सत्ता शिक्षा और स्वास्थ्य का व्यय अपने पास नहीं रखना चाहती है वो इसको PVT players के साथ में देकर पल्ला झाड़ना चाहती है और फिर वही होगा जैसा मौत के समय में पहलगाम की flights के rate बढ़ा दिए गए और सरकार को advisory जारी करनी पड़ी कोई action नहीं लिया गया कि इनका ख़र्च सरकार देगी या जो भी है। 


इनका तो target set होता है और इसको बेचना नहीं ये कहते हैं disinvestment। बजट में आता तो है कि सरकार का लक्ष्य है disinvestment से फलाने हज़ार करोड़ सरकार को कमाने हैं। 


अभी भी देख रहा हूँ कुछ शिक्षक मान चुके हैं मर्जर के लिए और कुछ में आक्रोश है लेकिन संगठित होकर कार्य कीजिये सभी ऐसे नहीं होगा ज्ञापन दीजिए विरोध दर्ज करिये शांति के साथ बाक़ी legally मैं लग चुका हूँ जल्द ही पटल पर सबकुछ रखूँगा ।  


9927035996 


#rana