कल अनुदेशक की सुनवाई के दौरान जो हुआ, उसने सरकार की असली तस्वीर सबके सामने ला दी। शिक्षा की गुणवत्ता की बातें खूब की जाती हैं, लेकिन जब शिक्षकों को न्यूनतम वेतन और मूलभूत सुविधाएँ देने की बारी आती है, तो सरकार को अचानक बचत याद आ जाती है। बाकी जगह करोड़ों बहाने में खर्च हो जाते हैं, लेकिन शिक्षा के नाम पर तिजोरी बंद रहती है।
merger’ की जो नई योजना आई है, वह सिर्फ दिखावे की चमक है—असली मक़सद वही है: शिक्षकों को उलझाना, उनकी उम्मीदों को पाटना और बच्चों की पढ़ाई को पीछे छोड़ना। लगता है कि शिक्षा सुधार नहीं, बस खातों का ‘merger’ करना ही असली खेल बन गया है।
all teachers should share this maximum plz