प्रदेश में 1.43 लाख शिक्षामित्रों का मानदेय बढ़ाने का प्रस्ताव तैयार करने के लिए गठित की गई कमेटी ने अपने स्तर से मानदेय बढ़ोत्तरी पर कोई निर्णय लेने से हाथ खड़े कर दिए हैं। शासन की ओर से गठित की गई चार सदस्यीय कमेटी ने सरकार से अनुरोध किया है कि वह इस पर मंत्रिपरिषद या फिर सक्षम स्तर से कोई निर्णय लें तो ठीक होगा। क्योंकि यह इनके अधिकार क्षेत्र से बाहर का मामला है। ऐसे में मानदेय बढ़ोत्तरी के लिए शिक्षामित्रों को इंतजार करना होगा।
परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में तैनात शिक्षामित्रों के मानदेय में बढ़ोत्तरी की मांग लंबे समय से की जा रही है। शिक्षामित्रों के संगठन इस मामले में कई बार मंत्री व अधिकारियों से मिलकर मांग कर चुके हैं। ऐसे में इस प्रकरण पर शासन ने एक कमेटी बना दी थी। फिलहाल कमेटी ने शिक्षामित्रों के मानदेय बढ़ोत्तरी के संबंध में लंबी-चौड़ी एक्सरसाइज की लेकिन मानदेय बढ़ोत्तरी का मामला अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया है। शिक्षामित्रों का मानदेय छह बार बढ़ाया गया है। प्रथम मानदेय 1450 रुपये प्रति माह था और अब यह 10 हजार रुपये है जो सात गुना से अधिक है। शिक्षामित्रों को कैशलेस उपचार की सुविधा देने की भी घोषणा की गई है। वर्तमान में 1.43 लाख शिक्षामित्रों को 10 हजार रुपये मानदेय देने पर अभी 1577.95 करोड़ रुपये व्ययभार आ रहा है।
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कमेटी ने अपने पत्र में लिखा है कि अगर एक हजार रुपये भी मासिक मानदेय बढ़ाया जाएगा तो 157 करोड़ का अतिरिक्त व्ययभार आएगा। मानदेय बढ़ोत्तरी का निर्णय लेना अधिकारी व अधिकारियों की समिति अधिकार क्षेत्र से बाहर है। ऐसे में समिति ने सर्वसम्मति से अपने इस निर्णय से शासन को अवगत करा दिया है। जिससे वह उच्च न्यायालय के 12 जनवरी 2024 के आदेश के अनुसार मंत्रिपरिषद या अन्य सक्षम स्तर से लेने का कष्ट करें। समिति में मध्याह्न भोजन प्राधिकरण के वित्त नियंत्रक राकेश सिंह, परीक्षा नियामक प्राधिकारी अनिल भूषण चतुर्वेदी, निदेशक एससीईआरटी गणेश कुमार और बेसिक शिक्षा निदेशक प्रताप सिंह बघेल शामिल हैं।
 

