*ऑनलाइन हाजिरी का विरोध नहीं, जरूरी है हमारी डिमांड पर ध्यान दिया जाए।*
*विषय 1.*
*बेसिक शिक्षा नियमावली के अनुसार वरिष्ठता आधारित अंतर्जनपदीय स्थानान्तरण*
ट्रांसफर के बिना ऑनलाइन उपस्थिति पूर्णतः अव्यावहारिक है।
अधिकारियों की गलत नीतियों के दुष्परिणाम स्वरूप 15 वर्षों से अंतर्जनपदीय स्थानान्तरण से वंचित शिक्षक के साथ मानवीय मूल्यों को क्यों नही अपनाया जा रहा है। उनके संविधान प्रद्दत मौलिक अधिकारों का हनन आखिर अधिकारियों द्वारा बार बार क्यों किया जा है। उनका ट्रांसफर *बेसिक शिक्षा नियमावली के अनुसार वरिष्ठता आधारित अंतर्जनपदीय स्थानान्तरण* दशकों से क्यों नही किया जा रहा है।
यदि परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु होती है तो दाह संस्कार में आग देने वाले व्यक्ति को 13 दिवस उसी स्थान पर रहना होता है, क्या राष्ट्रवादी संस्कारयुक्त सरकार यह स्पष्ट करेगी कि वह शिक्षक किस अवकाश के तहत अपने परिवार के व्यक्ति के अंतिम संस्कार के कर्तव्य का निर्वहन करेगा? आकस्मिक अवकाश की श्रेणी में यह आता नहीं है, चिकित्सकीय श्रेणी में भी नहीं आता आखिर किस श्रेणी में इसे रखा जाएगा? शीतकालीन एवं ग्रीष्मकालीन अवकाश में ही किसी की मृत्यु की सुनिश्चितता होगी, ऐसा कोई अनुबंध 'यमराज' से किया गया है तो अवश्य प्रस्तुत करना चाहिए।
*विषय 2.*
यदि किसी शिक्षक साथी का विवाह संस्कार है, यह संस्कार आकस्मिक अवकाश की श्रेणी में आ नहीं सकता क्योंकि यह पूर्व नियोजित है, इसे चिकित्सकीय श्रेणी में भी नहीं ले सकते क्योंकि यह झूठ और षडयंत्र की श्रेणी में आएगा। आखिर इसके लिए विभाग के पास क्या प्रावधान है? बेसिक शिक्षा विभाग में कार्यरत शिक्षकों के प्रति एक अलग व्यवस्था वही बेसिक शिक्षा विभाग में कार्यरत अन्य कर्मचारी वर्ग के प्रति अलग व्यवस्था, आखिर यह दोहरा मापदंड क्यों? देश आजादी के 75 वर्ष पूर्ण कर चुका है और हम अभी भी 40 वर्ष से अधिक पुरानी अवकाश नियमावली को ढो रहे हैं।
*विषय 3.*
यदि किसी शिक्षक साथी के द्वारा या उसके परिवार के सदस्य के साथ विद्यालय समय में कोई दुर्घटना घटित होती है तो वह किस अवकाश के तहत अपने संस्थान को छोड़ेगा यह स्पष्ट नहीं है। यह बेहद चिंतनीय है कि ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई है, शिक्षकों को एक बंधुआ मजदूर की भांति शोषित नियमों के दायरे में बांधा जा रहा है जोकि तर्कसंगत नहीं है।
*ऐसे अनगिनत विषय है जिनका उत्तर ऑनलाइन हाजिरी आदेश नहीं देता है, जिसको लेकर शिक्षकों में भय व्याप्त होना लाजिमी है इसलिए मैं पुनः यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि विरोध ऑनलाइन हाजिरी का कदापि नहीं है, हम ऑनलाइन हाजिरी का स्वागत करते हैं परंतु आवश्यक है कि जो मांगें मानवीय दृष्टिकोण से स्वीकार किया जाना आवश्यक है उनका लाभ त्वरित रूप से शिक्षकों को दिया जाए, यहां यह स्पष्ट होना आवश्यक है कि उक्त लाभ शिक्षकों को छोड़कर शेष सभी कार्मिक ले रहें हैं। इसलिए इनकी आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता है।*
*शिक्षकों की सहजता और शालीनता को उनकी मौन स्वीकृति न माना जाए , सनद रहे शिक्षक चाणक्य की भूमिका में आने में जरा भी देर नहीं करेगा।*
