नई दिल्ली। अग्निवीर योजना के कई नफा-नुकसान हैं। इसके कुछ फायदे साफ नजर आ रहे हैं। जो युवा दसवीं के बाद आईटीआई या इससे मिलता-जुलता डिप्लोमा करके इस योजना में आवेदन कर रहे हैं, उन्हें नियुक्ति में प्राथमिकता मिल रही है।
दरसअल, सेनाओं का कहना है कि उन्हें तकनीकी रूप से मजबूत जवान चाहिए। जिनके पास पहले से ही डिप्लोमा है, उन्हें चयन में प्राथमिकता दी जा रही है। थल सेना में करीब 40 फीसदी जवानों को तकनीकी योग्यता की जरूरत होती है, जबकि वायुसेना और नौसेना में 80 फीसदी से अधिक जवानों के लिए तकनीकी योग्यता की जरूरत पड़ती है। पहले जब तक सेनाओं में नियमित भर्ती होती थी, तब सेना खुद ही अपने जवानों को प्रशिक्षित करती थी। इस प्रक्रिया में दो साल लग जाते थे, लेकिन अब अग्निवीर का कार्यकाल ही कुल चार साल का है, इसलिए यहां पर तकनीकी रूप से दक्ष जवानों की जरूरत होती है। इसको देखते हुए डिप्लोमाधारी युवाओं को तरजीह दी जा रही है। डिप्लोमाधारकों को छह महीने का प्रशिक्षण देकर सेना की कार्यप्रणाली से अवगत करा दिया जाता है।
हर क्षेत्र के लोगों को भर्ती का मौका मिल रहा : अग्निवीर योजना से एक बदलाव सेनाओं में यह भी देखा गया है कि हर क्षेत्र के लोगों को भर्ती का मौका मिल रहा है। पहले नौसेना में दक्षिणी राज्यों के युवा ज्यादा हुआ करते थे। उत्तर भारतीय इसमें कम भर्ती हो पाते थे, लेकिन आज नौसेना के अग्निवीरों में 671 जिलों के युवा शामिल हो चुके हैं।
देश के अलग-अलग हिस्सों में भर्ती केंद्र बनाए जा रहे
नौसेना के एक अधिकारी ने कहा कि हम चाहते हैं कि सभी जिलों का प्रतिनिधित्व नौसेना में हो। इसके लिए देश के हर हिस्से में जाकर नौसेना अग्निवीरों की भर्ती के लिए प्रसास किए जा रहे हैं। आवेदन प्रक्रिया ऑनलाइन है। देश के अलग-अलग हिस्सों में भर्ती केंद्र भी बनाए जा रहे हैं। इससे सभी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है। अन्य सेनाओं में भी यही प्रक्रिया अपनाई जा रही है। थल सेना में दक्षिण के लोग कम होते थे, लेकिन अग्निवीर योजना के तहत उनकी संख्या बढ़ रही है।
नौजवानों की अग्निवीर में दिलचस्पी बढ़ी
भर्ती प्रक्रिया से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि चूंकि अग्निवीरों का कार्यकाल कम है, इसलिए हम डिप्लोमाधारी नौजवानों को अग्निवीर बनने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। इस कोशिश में तीनों सेनाओं को अच्छी-खासी सफलता भी मिली है। शुरू में डिप्लोमाधारी कम आ रहे थे, लेकिन अब उनकी संख्या बढ़ रही है। इसे बढ़ाने की कोशिशें आगे भी जारी रहेंगी।

