अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्ती परीक्षाओं को रद्द करने के मामले में दाखिल अपील पर याचियों को राहत नहीं मिली है। हाईकोर्ट ने एकल पीठ के फैसले को सही मानते हुए याचिका खारिज कर दी। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने विकास तिवारी व अन्य की याचिका को खारिज करते हुए दिया है।
अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की ओर से ग्राम पंचायत अधिकारी, ग्राम विकास अधिकारी (समाज कल्याण) और समाज कल्याण पर्यवेक्षक केपदों पर भर्ती के लिए परीक्षा कराई गई थी। लेकिन परीक्षा में धांधली होने पर उसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। मामले में सुनवाई करते हुए एकल पीठ ने 14 दिसंबर 2021 को अपने आदेश में भर्ती परीक्षा को रद्द कर दिया था।
याचियों की ओर से एकल पीठ के फैसले को चुनौती दी गई थी। मामले में सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायमूर्ति की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले में कोई कमी नहीं पाई और उसे सही मानते हुए याचिका को खारिज कर दिया।सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का हवाला दिया
कोर्ट में याचियों के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि मामले के तथ्यों से यह स्पष्ट है कि दागी उम्मीदवारों को आसानी से अलग किया जा सकता है। याची के अधिवक्ता ने अपने पक्ष में सचिन कुमार व अन्य बनाम दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का हवाला दिया। कहा कि पूरे परिणाम को रद्द नहीं किया जाना चाहिए था।
कहा कि आयोग का निर्णय जांच रिपोर्ट पर आधारित है। जिसकी प्रति याचिकाकर्ताओं को भी नहीं दी गई थी। अभी तक फाइनल रिपोर्ट नहीं दी गई है। प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में निष्कर्ष केवल प्रथम दृष्टया है। इसलिए उस पर कोई निर्णय नहीं लिया जाना चाहिए था।ओएमआर शीट में मिली थी विसंगति
दूसरी ओर प्रतिवादियों के अधिवक्ता ने कहा कि 28 अगस्त 2019 को घोषित पहले परिणाम में 1952 उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट किया गया था, जिनमें से 136 उम्मीदवारों की उम्मीदवारी ओएमआर शीट में विसंगतियों के कारण रद्द कर दी गई थी और उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
दूसरा परिणाम 29 फरवरी 2020 को घोषित किया गया, जिसमें 1553 उम्मीदवारों को सफल घोषित किया गया था। इनमें 393 उम्मीदवारों की उम्मीदवारी इसलिए रोक दी गई थी, क्योंकि उनके मामलों में ओएमआर शीट के साथ छेड़छाड़ पाई गई थी। परीक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होने से भर्ती प्रक्रिया को रद्द कर दिया गया था
कोर्ट ने भी सुनवाई केदौरान पाया कि परीक्षा में अनुचित संसाधनों का प्रयोग किया गया। कुछ अभ्यर्थियों ने अपनी ओएमआर शीट खाली छोड़ दी थी। जबकि, परीक्षा परिणाम में उन ओएमआर शीट के नंबर भी घोषित किए गए थे। कोर्ट ने परिणामोें में विसंगतियों को देखते हुए एकल पीठ के फैसले को सही ठहराया और याचिका में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया।