किताबों का पता नहीं, चालू हो गया शिक्षण सत्र: स्कूलों की शैक्षिक गुणवत्ता प्रभावित होना स्वाभाविक

फतेहपुर। किताबों का पता नहीं है और परिषदीय स्कूलों में शिक्षण सत्र चालू हो गया। अभी किताबें आने की उम्मीद भी नहीं है। वजह है कि अभी तक बेसिक शिक्षा विभाग ने प्रकाशन को किताबों का मांगपत्र भी नहीं भेजा है। पिछले सत्र में किताबों की आपूर्ति सितंबर महीने में हो पाई थी। इस बार भी इसके पहले किताबें मिलने की संभावना कम नजर आ रही है। ऐसे में सरकार स्कूलों की शैक्षिक गुणवत्ता प्रभावित होना स्वाभाविक है।


पहली अप्रैल से शिक्षण सत्र की शुरुआत हो चुकी है। एक तरफ निजी स्कूलों में कापी किताबों की व्यवस्था के साथ पठन पाठन का काम प्रारंभ हो गया है, लेकिन परिषदीय स्कूलों में अभी तक एक भी किताब नहीं आई है। परिषदीय स्कूलों में बेसिक शिक्षा विभाग मुफ्त में किताबों का वितरण करता है। यह किताबें विभाग सीधा प्रकाशन करने वालों से खरीदता है। किताबों की खरीद के लिए पहले निदेशालय जिलों को किताबों की खरीद के लिए अनुमति देता है। इसके बाद जिले से प्रकाशन करने वालों को किताबों का मांग पत्र भेजा जाता है। नए सत्र के 15 दिन बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक परिषदीय स्कूलों में आने वाले बच्चे सिर्फ एमडीएम खाकर घर चले जाते हैं। शिक्षक भी सिर्फ औपचारिकता पूरी करते हैं।

खास बात तो यह है कि मांगपत्र भेजने के दो महीने बाद ही किताबों की आपूर्ति शुरू होती है और शत प्रतिशत किताबें आने में कम से कम दो महीने का समय लगता है। अगर अभी मांगपत्र भेज दिया जाए, तो अगस्त तक स्कूलों में किताबें पहुंच सकती हैं, लेकिन अभी तक बेसिक शिक्षा विभाग को किताबों का मांग पत्र भेजने के निर्देश ही प्राप्त नहीं हुए हैं।
जिलेभर बेसिक शिक्षा विभाग के 2128 स्कूल संचालित हैं। इनमें दो लाख 67 हजार बच्चे पढ़ रहे हैं। यह बच्चे स्कूल में बैठे रहते हैं और एमडीएम खाने के बाद घर लौट जाते हैं। ग्रीष्मकालीन अवकाश के पहले किताबें आना संभव नहीं है और इसके बाद स्कूल बंद हो जाएंगे। फिर जुलाई में खुलेंगे। इन तीन महीनों के कोर्स में बच्चों का पिछड़ना तय है, जबकि निजी स्कूलों में 20 से 25 प्रतिशत कोर्स पूरा होने के बाद ग्रीष्मकालीन अवकाश होगा।
सत्र समापन होने के बाद पुराने बच्चों की कुछ अच्छी किताबें जमा करा ली जाती हैं। उन्हीं किताबों से शिक्षक कोर्स पढ़ाना शुरू कर देते हैं। नई किताबें आने के बाद बच्चों का वितरित की जाती हैं। अखिलेश सिंह, डीसी सामुदायिक शिक्षक