उन्नाव: बेसिक शिक्षा विभाग में तैनात अध्यापक सरकार के लिए एक रोबोट बन कर रह गए हैं। शिक्षण कार्य के अलावा सरकार इनसे लगातार अपने कार्य करवा रही है। यहां तक कि उच्च न्यायालय ने कई बार इस विषय को संज्ञान लेकर शिक्षकों से गैर शिक्षण कार्य न करवाए जाने की बात | कही है लेकिन अफसरों को इस विषय पर शायद बड़ी आपत्ति है। बीएसए संजय तिवारी का कहना है कि सरकार का जो आदेश होगा उसे सभी को मानना होगा।
उत्तर प्रदेशीय जूनियर शिक्षक संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि एक तरफ महानिदेशक स्कूल शिक्षा एवं राज्य परियोजना कार्यालय लगातार शिक्षा संवर्धन के लिए नए-नए प्रयोग बेसिक शिक्षा में कर रहा है। वहीं दूसरी ओर यह दावे खोखले साबित होते हैं। जब शिक्षकों से लगातार गैर शैक्षणिक कार्य करवाए जाते हैं। मौजूदा समय शिक्षण कार्य में तीन दर्जन गतिविधियों के अलावा एक दर्जन गैर शैक्षणिक कार्य भी इन्हीं शिक्षकों के जिम्मे हैं। इन कार्यों के पश्चात शिक्षकों से उनके शिक्षण की गुणवत्ता की जांच के लिए विभिन्न प्रकार की जांच समितियां गठित कर शिक्षकों की जांच की जाती है। संघ के पदाधिकारियों का कहना है यह सही है कि शिक्षकों को कोल्हू के बैल की तरह जोता जा रहा है। बावजूद जो हमारा प्रमुख दायित्व है। उस शिक्षण कार्य में हम गुणवत्ता तो रखेंगे ही। सरकार भी भली भांति यह जानती है इसलिए शिक्षकों को मानव नहीं मशीन समझा जा रहा है। इससे उनका व्यक्तिगत जीवन, शिक्षण कौशल सब प्रभावित हो रहा है।
शिक्षकों से लिए जा रहे गैर शैक्षणिक कार्य
पोलियो कार्यक्रम, दस्तक कार्यक्रम, मिशन इंद्रधनुष, संचारी रोग अभियान, समस्त प्रकार के निर्वाचन के कार्य, मतगणना, जनगणना, विद्यालय में निर्माण कार्य, मध्याह्न भोजन गणना प्रपत्र, कृमि दिवस की दवाइयां वितरण, विद्यालय समय के पश्चात शिक्षकों की संकुल बैठक, विभिन्न प्रकार की आनलाइन प्रशिक्षण, आपरेशन कायाकल्प, विद्यालयों की जियो टैगिंग, जीरो बैलेंस खाता खुलवाना, बालगणना व मतदान से लेकर मतगणना तक जैसे न जाने कितने गैर शैक्षणिक कार्य शिक्षकों से करवाए जाते है।
यह काम भी शिक्षक के भरोसे
परिषदीय विद्यालयों में चपरासी की नियुक्तिया न के बराबर है। इसलिए विद्यालय खोलने, साफ सफाई करवाने, समय सारणी के अनुसार शिक्षण कार्य करवाने के साथ-साथ बीईओ कार्यालय से मांगी गई सूचना भी प्रेषित करनी होती है। परिषदीय विद्यालयों में बाबू और चपरासी की नियुक्ति नहीं की गई। इसके बाद प्रेरणा पोर्टल पर छात्रों का डाटा फीड करना एवं उनका प्रमाणीकरण करना, यू डाइस पोर्टल पर बच्चों की संख्या और डाटा अपलोड करना डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर के तहत बच्चों के अभिभावकों के खातों में पैसे स्थानांतरण करने की संपूर्ण प्रक्रिया शिक्षक को करनी होती है।