पेंशन को फिर जरूरत और तर्क की कसौटी पर कसिए


हर बीतते दिन के साथ पुरानी पेंशन योजना, यानी ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) को बहाल करने की मांग तेज हो रही है। ‘नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम’ की ओर से 1 अक्तूबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में पेंशन शंखनाद महारैली का आयोजन किया गया, जिसमें विपक्षी दलों की भी भागीदारी देखी गई। केंद्र सरकार भी दबाव में आ गई है। पुरानी पेंशन स्कीम की समीक्षा के लिए उसने एक समिति गठित की है। केंद्र सरकार का यह निर्णय विपक्ष शासित राज्यों, छत्तीसगढ़, झारखंड, राजस्थान, पंजाब और हिमाचल प्रदेश द्वारा पुरानी पेंशन योजना को अपनाने के बाद आया है।



पेंशन जैसे विषय को तर्क और तथ्य की कसौटी पर कसने की जरूरत है। अगर सरकार को वित्तीय बोझ की ही चिंता है, तो फिर सांसदों, विधायकों के लिए भी एक नेशन एक पेंशन की बात क्यों नहीं हो रही? काफी योग्यता व प्रतियोगिता के बाद सरकारी विभाग में पूरा जीवन खपा देने वाले व्यक्ति को 10 प्रतिशत वेतन कटौती के बाद भी उसका बुढ़ापा असुरक्षित है। अपने देश में करीब 85 प्रतिशत सांसद करोड़पति हैं, और ये माननीय महज 600 रुपये की सामाजिक सुरक्षा पेंशन से जनता के गुजारे की बात करते हैं और एनपीएस को ज्यादा अच्छा बताते हैं। राज्यों की बात करें, तो 20 सूबे ऐसे हैं, जो अपने पूर्व विधायकों को सांसद से ज्यादा पेंशन देते हैं। मणिपुर में एक पूर्व विधायक को 70 हजार रुपये की मूल पेंशन मिलती है। मूल पेंशन में अन्य भत्ते जुड़ने से पेंशन की राशि दोगुना से ज्यादा बढ़ जाती है।


आश्चर्य नहीं, पेंशन को लेकर असंतोष व राजनीति, दोनों का विस्तार हो रहा है। सरकारों को अपने सोचने का ढंग बदलना होगा। जहां सरकार पुरानी पेंशन को रेवड़ी बताती है, तो वहीं आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2012-13 के बाद से बैंकों ने कॉरपोरेट घरानों के 15 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि बट्टे खाते में डाल दी, जिसमें से सिर्फ 19 प्रतिशत की ही वसूली हुई है।


यह वाकई चिंता की बात है कि नई पेंशन स्कीम के चलते अब दो लाख रुपये वेतन पाने वाले लोगों का भी महज पांच से दस हजार रुपये तक पेंशन बन रही हैै। जिन्होंने 20 से 35 वर्ष तक सरकार के लिए काम किया, उन्हें रिटायरमेंट के बाद बुढ़ापे में बाजार भरोसे छोड़ देना कहां तक उचित है? द ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के पेंशन मार्केट रिपोर्ट के अनुसार, कई देश पेंशन फंड के लिए जीडीपी का 15 से 40 प्रतिशत खर्च कर रहे हैं, वहीं भारत सिर्फ तीन प्रतिशत। सरकारों को बजट में अपना पेंशन खर्च को बढ़ाना पड़ेगा। यह देश उन बुजुर्गों का भी है, जिन्होंने देश के विकास में अपनी जवानी लगा दी। अगर नई पेंशन स्कीम को सरकार सही मानती है, तो इसे सांसदों, विधायकों पर भी लागू करना चाहिए। केंद्र को इस विषय पर जल्द विचार करना चाहिए।


(ये लेखक के अपने विचार हैं)