मदरसा शिक्षा अधिनियम असंवैधानिक: हाईकोर्ट


हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। न्यायालय ने उक्त अधिनियम को संविधान के पंथ निरपेक्षता के मूल सिद्धांतों, संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता, अनुच्छेद 21 के तहत जीवन व अनुच्छेद 21-ए के तहत शिक्षा के मौलिक अधिकारों के विपरीत करार दिया है। साथ ही न्यायालय ने इस कानून को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन एक्ट की धारा 22 के भी विरुद्ध पाया है।

छात्रों के समायोजन का आदेश न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि मदरसा अधिनियम के समाप्त होने के बाद प्रदेश में बड़ी संख्या में मौजूद मदरसों में पढ़ने वाले छात्र प्रभावित होंगे, लिहाजा उन्हें प्राइमरी, हाईस्कूल और इंटरमीडिएट बोर्ड से सम्बद्ध नियमित स्कूलों में समायोजित किया जाए। न्यायालय ने कहा कि सरकार पर्याप्त संख्या में सीटें बढ़ाए और यदि आवश्यकता हो तो नए विद्यालयों की स्थापना करे। न्यायालय ने कहा है कि सरकार यह अवश्य सुनिश्चित करे कि 6 से 14 साल का कोई बच्चा मान्यता प्राप्त विद्यालयों में दाखिले से छूट न जाए।

यह निर्णय न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने अधिवक्ता अंशुमान सिंह राठौर की याचिका पर पारित किया। उक्त याचिका के साथ न्यायालय ने एकल पीठों द्वारा भेजी गई उन याचिकाओं पर भी सुनवाई की जिनमें मदरसा बोर्ड अधिनियम की संवैधानिकता का प्रश्न उठाते हुए, बड़ी बेंच को मामले भेजे गए थे। याचिकाओं पर न्यायालय ने 8 फरवरी 2024 को ही सुनवाई पूरी कर अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया था। वहीं सुनवाई के दौरान प्रमुख याचिका के विरुद्ध कुछ मदरसों, मदरसों के शिक्षक संगठन व कर्मचारी संगठन ने भी हस्तक्षेप प्रार्थना पत्र दाखिल किया था।



अधिनियम को हाईकोर्ट में चुनौती का आधार
याचिका में मदरसा अधिनियम को संविधान के पंथ निरपेक्ष ढांचे के विपरीत बताया गया। कहा गया कि मदरसा अधिनियम में यह स्पष्ट ही नहीं है कि एक विशेष धर्म की शिक्षा के लिए अलग से सरकारी बोर्ड बनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी। वहीं न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि शिक्षा के मौलिक अधिकार के तहत राज्य का दायित्व है कि वह 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को अनिवार्य शिक्षा दे, वह अलग-अलग मजहब के बच्चों के बीच अंतर नहीं कर सकती। न्यायालय ने कहा कि राज्य यह नहीं कर सकता कि किसी विशेष धर्म के बच्चे को बाकियों से अलग शिक्षा दे। वहीं कोर्ट द्वारा नियुक्त एमिकस क्यूरी ने दलील दी कि शिक्षा के अधिकार के तहत सरकार 6 से 14 वर्ष के बच्चों को ऐसी शिक्षा दे सकती है जो यूनिवर्सल हो न कि धर्म विशेष से सम्बंधित।


● मदरसों के छात्रों को प्राइमरी, माध्यमिक बोर्ड के स्कूलों में समायोजित करने के निर्देश

● 560 मदरसों को राज्य सरकार से मिलता है अनुदान

सरकार ने अरबी-फारसी और प्राच्य भाषाओं के विकास के लिए मदरसा शिक्षा अधिनियम और संस्कृत शिक्षा परिषद बनायी थी। मदरसा शिक्षा अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया गया है। बोर्ड निर्णय के अध्ययन के बाद तय करेगा आगे क्या करना है।-डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद, अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड