इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है किसी आपराधिक मामले का लंबित होना अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति से इनकार करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है। देवरिया के महेश सिंह चौहान की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अजित कुमार ने कहा कि नियोक्ता को अनुकंपा नियुक्ति देने के लिए अपने विवेकाधिकार का प्रयोग निष्पक्ष रूप से करना चाहिए।
ये भी पढ़ें - लोक सभा तारांकित प्रश्न डायरी संख्या-221 में पिछले 03 वर्षो में दिये गये रोजगार के सम्बन्ध में।
ये भी पढ़ें - कल से जिलों में विद्यालयों की हकीकत जानेंगे अधिकारी, समग्र शिक्षा के तहत दो-दो अधिकारी हर मंडल में किए तैनात
कोर्ट ने अवतार सिंह बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया। याची की अनुकंपा नियुक्ति के आवेदन को इसलिए खारिज कर दिया गया था कि उसके खिलाफ आपराधिक मामला लंबित था। जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी चरित्र प्रमाण पत्र में भी यह शर्त थी कि वह आपराधिक मामले के आने वाले परिणाम पर निर्भर करेगा। कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का मूल उद्देश्य मृतक के परिवार को तत्काल वित्तीय सहायता प्रदान करना है। पीठ ने कहा, यदि नियुक्ति केवल मामूली आधार के लिए या केवल इस आधार पर स्थगित कर दी जाती है कि नियोक्ता मुकदमे के अंतिम परिणाम का इंतजार कर रहा है तो अनुकंपा नियुक्ति प्रदान करने का उद्देश्य विफल हो जाएगा।
अनुकंपा नियुक्ति में व्यावहारिक रवैया जरूरी:हाईकोर्ट
कोर्ट ने कहा कि जहां नियमित नियुक्तियों में नियम सख्त होते हैं, वहीं अनुकंपा नियुक्ति के मामलों में अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जहां डीएम द्वारा चरित्र प्रमाण पत्र जारी किया गया है, वहां केवल आपराधिक मामले के लंबित रहने से अनुकंपा नियुक्ति की अस्वीकृति नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए संबंधित अधिकारियों को मामले पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया है।