प्रदेश के सरकारी स्कूलों में ग्रांट पर संकट, 75 प्रतिशत स्कूलों की अभी तक नहीं निकली है धनराशि, शिक्षा महानिदेशक से समय बढ़ाने की मांग


अमृत विचार : बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों के पब्लिक फाइनेशियल मैनेजमेंट सिस्टम (पीएफएमएस) खाते में कम्पोजिट ग्रांट तकनीकी कारणों से जहां देर से पहुंच रही हैं। वहीं अंतिम तिथि 31 मार्च होने के कारण अब लैप्स होने की आशंका बनी हुई है।





काफी कम समय होने के कारण शिक्षक भी चिंतित हैं और उनको इस बात का डर है कि यदि 31 मार्च से पहले ग्रांट नहीं निकल पाई तो उनके विद्यालय का विकास कैसे हो पायेगा। कुछ शिक्षक ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने निजी बजट से इस सोच में विकास कार्य करवा दिया है कि बाद में ग्रांट आने पर उनको पैसा मिल जायेगा। लेकिन मौजूदा व्यवस्था के चलते बजट मिलने में देरी हो रही है 

शिक्षकों का कहना है कि पहले चेक माध्यम से बजट मिल जाता था लेकिन अब बदली हुई व्यवस्था के तहत बजट मिलता है इसमें देरी होती है और समय से विद्यालय में अधूरे पड़े कार्य भी नहीं हो पाते हैं। शिक्षकों ने बताया कि यही हाल पिछले साल




भी हुआ था जिसमें काफी संख्या में विद्यालयों की ग्रांट वापस हो गई थी। यदि इस बार 31 मार्च से समय आगे नहीं बढ़ाया गया तो ग्रांट लैप्स होना लगभग तय है। बताया जा रहा है कि अभी 75 प्रतिशत स्कूलों की ग्रांट नहीं निकल पाई है।




6 कंपोजिट ग्रांट जुलाई, अगस्त के महीने में ह में ही जारी हो जानी चाहिए, जिससे शिक्षक आवश्यकता अनुसार खर्च कर सके। परंतु ये देखा गया है कि ग्रांट फरवरी, मार्च में जारी की जाती है और इसे जल्द खर्च करने का दबाव भी शिक्षको पर होता है, अन्यथा 31 मार्च को रात 12 बजे सारा पैसा लैप्स हो जाता है। इसका फायदा वेंडर भी खूब उठाते है, इस पर ध्यान देना आवश्यक है।
विनय कुमार सिंह, प्रान्तीय अध्यक्ष प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक एसोसिएशन




विद्यालयों के विकास कार्य के लिए दी जाने वाली धनराशि समय से नहीं मिलती है। । यदि मिल जाये तो निकालने की प्रक्रिया इतनी जटिल कर दी गई है कि उसका फायदा अब वेंडर उठाते हैं वह मनमाने ढंग से निर्माण समाग्री उपलब्ध कराते हैं। क्योकि बजट अब सीधे उनके खाते में जाता है। कई बार ऐसा भी होता है कि 31 मार्च बीत जाती है धनारशि वापस हो जाती है।

महेश मिश्रा, मंडल अध्यक्ष राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ