कन्यादान अनिवार्य परंपरा नहीं: कोर्ट



लखनऊ,। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक वैवाहिक विवाद के मामले में कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह को संपन्न करने के लिए कन्यादान की रस्म अनिवार्य परंपरा नहीं है। न्यायालय ने कहा कि प्रावधानों के मुताबिक सिर्फ सप्तपदी ही ऐसी परंपरा है, जो हिन्दू विवाह को सम्पन्न करने के लिए आवश्यक है।


यह टिप्पणी न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने आशुतोष यादव की ओर से दाखिल एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर दिया है। याची की ओर से वैवाहिक विवाद के सम्बंध में चल रहे आपराधिक मामले में एक गवाह को पुन समन की प्रार्थना की गई थी। विचारण अदालत ने याची की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया, इस पर उसने हाईकोर्ट की शरण ली। याची की ओर से दलील दी गई कि उसकी पत्नी का कन्यादान हुआ था अथवा नहीं, यह स्थापित करने के लिए अभियोजन के गवाहों जिसमें वादी भी शामिल है, पुन समन किया जाना आवश्यक है। इस पर न्यायालय ने हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 7 का उल्लेख किया जिसके तहत हिन्दू विवाह के लिए सप्तपदी को ही अनिवार्य परंपरा माना गया है। न्यायालय ने कहा कि उक्त प्रावधान को देखते हुए कन्यादान हुआ था अथवा नहीं, यह प्रश्न प्रासंगिक ही नहीं है, लिहाजा गवाहों को पुन समन की जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। इन टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया।