चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था, हम नियंत्रित नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम केस पर की यह टिप्पणी

 

ईवीएम में दर्ज 100 फीसदी मतदान को वीवीपैट पर्चियों से मिलान करने की मांग पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह चुनाव को नियंत्रित नहीं कर सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है और हम इसे नियंत्रित नहीं कर सकते।



जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने निर्वाचन आयोग से कुछ तथ्यात्मक स्पष्टीकरण लेने के बाद दोबारा से फैसला सुरक्षित रख लिया। जस्टिस दत्ता ने याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण की दलीलों को सुनने के बाद यह टिप्पणी की।


संदेह को दूर कर दिया है अधिवक्ता भूषण ने कहा, निर्वाचन आयोग द्वारा ये कहना कि ईवीएम में प्रोसेसर चिप सिर्फ एक प्रोग्रामेबल है, यह संदेह के घेरे में है। उनकी इस दलील पर जस्टिस खन्ना ने कहा कि नर्वाचन आयोग के अधिकारी ने इस संदेह को दूर कर दिया है, अब इसमें कुछ बचा नहीं है।


चार बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित किए जाने के छह दिन बाद दोबारा से बुधवार को सुनवाई की। शीर्ष अदालत ने कहा कि हम सिर्फ 3-4 बिंदुओं पर स्पष्टीकरण चाहते हैं। कुछ चीजें तथ्यात्मक रूप से हमें सही करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इन सवालों का जवाब देने के लिए निर्वाचन आयोग के संबंधित अधिकारी को भोजनावकाश के बाद 2 बजे सुनवाई के दौरान मौजूद रहने का आदेश दिया ताकि इन सवालों का जवाब मिल सके।


पहला यह कि माइक्रोकंट्रोलर नियंत्रण इकाई में लगा है या वीवीपैट में? ऐसा संकेत मिल रहा है कि हम इस धारणा में थे कि माइक्रोकंट्रोलर ईवीएम के नियंत्रण इकाई में लगा है।

दूसरा क्या सिर्फ नियंत्रण ईकाई को सील किया जाता है या वीवीपैट को अलग से रखा जाता है, इस पर हम कुछ स्पष्टीकरण चाहते हैं।

तीसरा चुनाव चिन्ह लोडिंग यूनिट्स का संदर्भ लेते हैं, उनमें से कितनी उपलब्ध हैं?

चौथा चुनाव याचिका की सीमा 30 दिन है और इसलिए ईवीएम में डेटा 45 दिनों के लिए संग्रहीत किया जाता है। लेकिन जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत इसे सुरक्षित रखने की सीमा 45 दिन है, इसकी अवधि तदनुसार बढ़ानी पड़ सकती है।



सुधार करना है तो हम कर सकते हैं जस्टिस खन्ना

मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस खन्ना ने कहा कि यदि कुछ सुधार करने की जरूरत है तो हम जरूर सुधार कर सकते हैं। ‘ने पहले भी दो बार मामले में हस्तक्षेप किया है। उन्होंने कहा कि पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वीवीपैट अनिवार्य होना चाहिए और दूसरी बार जब अदालत ने वीवीपैट पर्चियों के मिलान एक से बढ़ाकर पांच कर दी थी।