लखनऊ कानपुर देहात। उत्तर प्रदेश में प्राथमिक स्कूलों के विलय को लेकर दाखिल याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में गुरुवार को सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई जस्टिस पंकज भाटिया की एकलपीठ में हुई। समय की कमी के कारण सुनवाई पूरी नहीं हो पाई। कल यानी शुक्रवार को फिर से सुनवाई होगी। राज्य सरकार अपना पक्ष रखेगी। न्यायालय ने कहा और अतिरिक्त समय नहीं दिया जाएगा। संभावना है कल सुनवाई पूरी हो जाएगी। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा ने दलील दी। उन्होंने कहा कि सरकार का यह निर्णय राइट टू एजुकेशन एक्ट का उल्लंघन है। इससे बच्चों और शिक्षकों दोनों का भविष्य प्रभावित होगा। आपस में विलय होने के
कारण स्कूल बच्चों के घर से दूर हो जाएंगे। उनको वहां तक पहुंचना कठिन होगा, क्योंकि गांवों में जाने के लिए साधन नहीं होता है। घर का सदस्य इतना सक्षम नहीं होता है कि वो बच्चों को रोज 2-3 किलोमीटर ले जाकर स्कूल छोड़ सके। इस कारण ऐसे बच्चों की पढ़ाई में बाधा पड़ेगा जिनके घर से स्कूल की दूरी बढ़ जाएगी। वहीं राज्य सरकार की ओर से एएजी अनुज कुदेशिया ने बहस की। उन्होंने कहा कि 58 ऐसे स्कूल हैं जिसमें एक भी छात्र नहीं हैं। राज्य सरकार का कहना है कि कोई भी स्कूल बंद नहीं किया जाएगा। उनका उपयोग अन्य सरकारी कार्य में किया जाएगा।
सरकार का क्या है तर्क-
सरकार का कहना है कि सभी स्टूडेंट को बेहतर और सुविधापूर्वक शिक्षा देने के लिए ये कदम उठाया जा रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति
2020 और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा (एनसीएफ)-2020 के तहत स्कूलों के बीच सहयोग, समन्वय और संसाधनों के साझा उपयोग को बढ़ावा देना जरूरी है। जिससे हर स्टूडेंट को सुविधा के साथ बेहतर शिक्षा मिल सके।
सरकार की क्या है तैयारी-हर जिले में एक मुख्यमंत्री अभ्युदय कंपोजिट विद्यालय (कक्षा 1 से 8 तक) खोला जा रहा है। प्रदेश सरकार की ओर से इन स्कूलों को आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर और शैक्षणिक सुविधाओं से लैस किया जाएगा। हर स्कूल में कम से कम 450 स्टूडेंट के लिए संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। स्कूल बिल्डिंग को 1.42 करोड़ की लागत से अपग्रेड भी किया जा रहा। स्कूलों में स्मार्ट क्लास, टॉयलेट, फर्नीचर, पुस्तकालय, कंप्यूटर रूम, मिडडे मील किचन, डायनिंग हॉल, सीसीटीवी, वाई-फाई, ओपन जिम
और शुद्ध पेयजल की व्यवस्था की जाएगी। इसी तरह सरकार की ओर से हर जिले में एक मुख्यमंत्री मॉडल कंपोजिट स्कूल (कक्षा 1 से 12 तक) की स्थापना की जा रही है। इस पर करीब 30 करोड़ रुपए की लागत आएगी। इन स्कूलों में कम से कम 1500 छात्रों के लिए स्मार्ट क्लास, एडवांस साइंस लैब, डिजिटल लाइब्रेरी, खेल मैदान, कौशल विकास सुविधाओं की स्थापना की जाएगी। कक्षा 11-12 के लिए विज्ञान, वाणिज्य और कला संकाय की अलग-अलग कक्षाओं का भी प्रावधान किया जाएगा।
28 हजार स्कूल पहले ही हो चुके हैं मर्ज-
साल 2017-18 में बेसिक शिक्षा परिषद के 1.58 लाख से अधिक स्कूल थे। इनमें 1 लाख 13 हजार 289 प्राइमरी स्कूल थे। कंपोजिट विद्यालयों के गठन के लिए कम छात्र संख्या वाले करीब
28 हजार स्कूलों को पड़ोस के स्कूल में मर्ज किया गया था। इससे 28 हजार प्रधानाध्यापक के पद सीधे-सीधे कम हो गए। वहीं छात्र शिक्षक अनुपात के लिहाज से हजारों टीचर भी सरप्लस हो गए।
70 फीसदी हेड मास्टर के पद खाली-
परिषदीय स्कूलों में करीब एक दशक से प्रधानाध्यापक के पद पर पदोन्नति नहीं हुई है। 70 फीसदी से ज्यादा स्कूलों में कार्यवाहक हेडमास्टर हैं। कार्यवाहक हेडमास्टरों को कोई अतिरिक्त भत्ता नहीं दिया जाता।
42 लाख कम हो गए छात्र-बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में 2017-18 में करीब 1.37 करोड़ स्टूडेंट थे। योगी सरकार की ओर से हर साल स्कूल चलो अभियान चलाकर नामांकन संख्या बढ़ाई गई। कोरोना महामारी के दौरान जब ग्रामीणों के पास प्राइवेट
स्कूलों में फीस जमा करने के लिए पैसे नहीं थे तो उन्होंने भी अपने बच्चों का सरकारी स्कूलों में दाखिला कराया। 2021-22 में स्टूडेंट की संख्या 1.91 करोड़ तक पहुंच गई थी लेकिन बीते 3 साल में लगातार ये संख्या घटती चली गई। आलम यह है कि अब ये संख्या 1.49 करोड़ रह गई है। जानकार मानते हैं कि करीब 28 हजार प्राथमिक स्कूलों को कंपोजिट स्कूल में तब्दील करने से भी छात्रों की संख्या कम हुई है। महकमे के अधिकारी कहते हैं कि शिक्षकों की ओर से नामांकन बढ़ाने और शिक्षा की गुणवत्ता सुधार में दिलचस्पी नहीं ली जाती है। इस वजह से बच्चे स्कूल छोड़कर चले जाते हैं जबकि सरकार हर संभव सहायता और सभी सुविधाएं दे रही है। इस प्रकार सरकार उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है।