12 सदस्यों वाले सबसे बड़े उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग की सुस्त गति ने प्रतियोगी छात्रों को निराश कर रखा है। अध्यक्ष प्रो. कीर्ति पांडेय ने पांच सितंबर 2024 को कार्यभार ग्रहण किया था। दस महीने हो गए, इस अवधि में आयोग मात्र एक परीक्षा ही करा सका। अशासकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर के 910 पदों पर भर्ती के लिए यह परीक्षा 16 और 17 अप्रैल को हुई थी।
तीन महीने बीत गए अभी तक इसका परिणाम घोषित नहीं हो सका। परीक्षा में लगभग 65 हजार अभ्यर्थी शामिल हुए थे। विशेषज्ञों की मानें तो इतनी ओएमआर को जांचने का काम चाहे तो तीन दिन में ही पूरा किया जा सकता है। आयोग की विश्वसनियता का आलम यह है कि इसकी पहली परीक्षा की कॉपी जंचवाने से लेकर कटऑफ जारी करने और चयन तक की कार्यवाही पूरी करने के लिए शासन को चार सदस्यीय कमेटी गठित करनी पड़ी। 13 जून को कमेटी गठित होने के एक महीने बाद भी इस भर्ती को लेकर कोई गतिविधि दिखाई नहीं पड़ रही।
वहीं, सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में प्रशिक्षित स्नातक (टीजीटी) और प्रवक्ता (पीजीटी) के 4163 पदों पर भर्ती के लिए आवेदन करने वाले 13,33,136 अभ्यर्थियों का इंतजार भी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। टीजीटी के 3539 पदों पर आवेदन करने वाले 868531 अभ्यर्थियों की परीक्षा आयोग ने 21 और 22 जुलाई को प्रस्तावित की थी, लेकिन अब यह कहकर कदम पीछे खींच लिया है कि तमाम अभ्यर्थियों ने ही कांवर यात्रा के कारण परीक्षा छूटने की आशंका जताते हुए परीक्षा टालने का अनुरोध किया है। हालांकि प्रतियोगी छात्र आयोग के इस तर्क से संतुष्ट नहीं हैं। प्रतियोगी छात्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग इसी सावन में 27 जुलाई को आरओ-एआरओ प्री 2023 परीक्षा कराने जा रहा है।
परीक्षार्थियों की संख्या के लिहाज से यह लोक सेवा आयोग की अब तक की सबसे बड़ी परीक्षा है। इसमें परीक्षार्थियों संख्या साढ़े दस लाख से अधिक है जबकि टीजीटी की परीक्षा में इससे कम लगभग साढ़े आठ लाख अभ्यर्थी ही हैं। प्रतियोगियों का सवाल है कि जब आरओ-एआरओ प्री परीक्षा हो सकती है तो फिर टीजीटी क्यों नहीं?