👉मामला था प्रमोशन में TET जरूरी है कि नहीं और कोर्ट ने किस बिहाफ पर फैसला सुनाया कि नौकरी में TET जरूरी है कि नहीं वह भी सभी के लिए कोर्ट तो RTE नियमावली से भी ऊपर फैसला कर दी है जबकि RTE नियमावली में कहा गया है कि 23 अगस्त 2010 के बाद की नियुक्तियों के लिए TET जरूरी है और कोर्ट ने उसके पहले वालों की नियुक्तियों पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया ।।
👉 आदेश में 02 अगस्त 2010 को एनसीटीई द्वारा जारी की गई गाइडलाइंस को दरकिनार किया गया है गाइडलाइंस में साफ लिखा है कि एक्ट के पारित होने के पूर्व में अगर राज्य सरकारों ने कोई विज्ञापन जारी किया गया है तो वे 2001 के नियमों के अनुसार क्रियान्वित होंगी यानी जब टीईटी परीक्षा नहीं होती थी ।।
👉इस आदेश ने टीईटी को पात्रता परीक्षा जो एनसीटीई द्वारा मानी गई थी अब उसको सर्वोच्च न्यायालय ने कांस्टीट्यूशनल राइट यानी संवैधानिक अधिकार मान लिया है ।
👉आरटीआई एक्ट 2009 के सेक्शन 23(2) का सहारा लेते हुए न्यायालय ने ये कहा है कि ऐसे शिक्षक जो कि एक्ट लागू होने पर न्यूनतम अहर्ता यानी टीईटी उत्तीर्ण नहीं थे उन्हें 05 वर्षों के भीतर टीईटी करना होगा ये मामला तमिलनाडु सरकार का था जहां पर तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार की अनुमति से ऐसी नियुक्तियां की थी जिनमें अभ्यर्थियों को टीईटी से छूट दी गई थी फिर केंद्र सरकार ने 2017 में इस पर क्लियरीफिकेशन दिया कि टीईटी करना होगा जबकि केंद्र सरकार स्वयं टीईटी से छूट की अनुमति नहीं दे सकती है । पर 2015 में तमिलनाडु राज्य के लिए इस समय सीमा को बढ़ाकर 2019 किया गया था ।।
👉सवाल फिर वही कि न्यूनतम अहर्ता के लिए जारी की गई 02 अगस्त 2011 की गाइडलाइंस के अनुसार जिसमें साफ लिखा है कि पूर्व पर नियुक्त किए गए शिक्षकों या ऐसे विज्ञापन जो एक्ट बनने से पूर्व जारी हुए थे उनके लिए 2001 की गाइडलाइंस आवश्यक रहेंगी ।
👉फैसला सरासर गलत है टेट 2010 से पहले करने वालो के लिए सिर्फ इसमें केंद्र सरकार का हस्तक्षेप होगा तो कुछ हो सकता है ये आदेश कही न कही किसी मंशा से हुआ है ।।