शीतकालीन अवकाश और हमारे शिक्षक

बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में शीतकालीन अवकाश देने की घोषणा लाखों शिक्षकों के लिए सर्दियों से ठीक पहले किसी उपहार सरीखी ही है। अब उन्हें 31 दिसंबर से 14 जनवरी तक अवकाश मिलेगा। इस अवकाश से शैक्षिक कैलेंडर पर कोई विपरीत असर भी नहीं पड़ना क्योंकि, प्रदेश सरकार ने गर्मियों की छुट्टियों में कटौती करते हुए सर्दियों के लिए समय निकाला है। ग्रीष्मकालीन अवकाश अब 20 मई से 15 जून तक रहेगा, जो पहले 30 जून तक होता था। छुट्टियां मिलने से शिक्षक बेशक कहीं भी घूमने जा सकेंगे लेकिन, यह सहूलियत कहीं न कहीं जिम्मेदारी के भाव से भी जुड़ी हुई है।


यह कड़वी सच्चाई है कि सरकारी स्कूलों को लेकर समाज के एक बड़े वर्ग की यही धारणा है कि यहां पढ़ाई का कोई स्तर नहीं है। खुद शिक्षा अधिकारी तक अपने बच्चों को सरकारी के बजाय निजी स्कूलों में पढ़ाते हैं। यह और बात है कि सर्व शिक्षा अभियान के जरिये सरकार प्रति वर्ष हजारों करोड़ रुपये खर्च कर रही है। इससे स्कूलों में संसाधन जुटाने में सफलता मिली, किंतु अधिकांश स्कूलों का शैक्षिक माहौल नहीं बदला जा सका। जिला और शासन स्तरीय अधिकारियों के निरीक्षण की रिपोर्ट भी शिक्षा व्यवस्था की स्याह पटकथा ही सुनाती नजर आती है। बीते वर्षो में श्रवस्ती जिले के प्राथमिक विद्यालय चितईपुर के निरीक्षण में पाया गया कि कक्षा दो के बच्चे अपना नाम तक नहीं लिख पा रहे। हंिदूी की वर्णमाला का भी उन्हें ज्ञान नहीं था। हद यह कि कक्षा पांच तक के अधिकांश बच्चों को सौ तक गिनती या 10 तक पहाड़ा भी नहीं आता था। ऐसी चिंताजनक स्थितियां हर जिले की हैं। ऐसी शिकायतें भी हैं कि शिक्षक पढ़ाने के बजाय राजनीति में ज्यादा रुचि लेते हैं। यह शर्मनाक स्थिति कतई अच्छी नहीं। शिक्षकों को सहूलियतें देना अच्छा है लेकिन, सरकार को स्कूलों की दशा सुधारने के और प्रयत्न करने चाहिए। शिक्षकों को भी चाहिए कि वे जिम्मेदारियों का ईमानदारी से निर्वहन करें और सरकारी विद्यालयों का ऐसा माहौल बनाएं कि बच्चों का जीवन सफल हो सके। गुरु होने की यही सार्थकता भी है।