ऑनलाइन सुनवाई से मना न करें अदालतें: सुप्रीम कोर्ट


नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि देश का कोई भी हाईकोर्ट दो सप्ताह के बाद वकीलों और वादियों को वीडियो कॉन्फ्रेंस और हाइब्रिड मोड से सुनवाई के लिए मना नहीं कर सकता है। कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया कि टेक्नोलॉजी अब पसंद या ना पसंद का विषय नहीं रह गया है। कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनलों को भी ऑनलाइन सुनवाई की अनुमति देनी होगी।



इच्छुक वकीलों और वादियों को हाइब्रिड मोड के जरिए वीडियो कॉन्फ्रेंस या सुनवाई की सुविधा देने से इनकार नहीं कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट को चार सप्ताह में हाइब्रिड या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुनवाई तक पहुंच बनाने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया लागू करने के भी निर्देश दिए हैं। पीठ ने कहा, आईटी मंत्रालय को ऑनलाइन सुनवाई तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए उत्तर पूर्वी राज्यों की अदालतों में इंटरनेट कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं। पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि ध्यान रहे ऐसे तरीके खत्म न हों।

तकनीक को समझना होगा


पीठ ने कहा, अगर आप जज बनना चाहते हैं तो आपको तकनीक को भी समझना होगा। कोर्ट ने हाईकोर्ट व न्यायाधिकरणों से प्रतिक्रिया मांगी थी कि क्या उन्होंने मामलों की सुनवाई के हाइब्रिड तरीके को खत्म कर दिया है, जिससे वकीलों, वादकारियों को कॉन्फ्रेंसिंग से किसी मामले में पेश होने की अनुमति मिल सके।


हाईकोर्ट की आलोचना


मुख्य न्यायाधीश ने कहा, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में पूरी तरह से नाफरमानी की है। ऑनलाइन सुनवाई की व्यवस्था को बंद कर दिया है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी इस व्यवस्था से मुंह फेर लिया है। हाईकोर्ट ने ऐसा क्यों किया। केरल व ओडिशा हाईकोर्ट दूसरे हाईकोर्ट से बेहतर कर रहे हैं।


बधिरों के लिए सांकेतिक भाषा दुभाषिया नियुक्त


सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को न्यायिक कार्यवाही को समझने में बधिर वकीलों और वादियों की मदद करने के लिए सांकेतिक भाषा दुभाषिए की नियुक्ति कर दी गई। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने इसकी घोषणा करते हुए कहा अब हमारे पास एक दुभाषिया हैं, जिनकी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट ने की है।


सीपीआईएल की याचिका पर नवंबर में सुनवाई


सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा, वह भ्रष्टाचार विरोधी कानून के एक प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली अर्जी पर 20 नवंबर को सुनवाई करेगा। प्रावधान भ्रष्टाचार के मामले में किसी लोक सेवक के खिलाफ जांच शुरू करने से पूर्व सक्षम प्राधिकारी से पूर्व मंजूरी लेने को अनिवार्य बनाता है।