अब नौकरी के दौरान भी कर सकेंगे पीएचडी, मिली अनुमति


पढ़ाई के दौरान ही नौकरी लग जाने पर पीएचडी नहीं कर पाने से निराश लोगों के लिए राहत भरी खबर है। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के नए अध्यादेश में ऐसे नौकरीपेशा वालों के लिए पीएचडी का विशेष प्रावधान किया है। नौकरीपेशा में रहते हुए वे अंशकालिक शोधार्थी के रूप में पीएचडी कर सकेंगे। नए पीएचडी अध्यादेश को विद्या परिषद व कार्य परिषद से अनुमोदन मिल गया है।


कुलपति प्रो. पूनम टंडन के दिशा-निर्देश में तैयार नए पीएचडी अध्यादेश 2024 को अनुमोदन मिलने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन उसको धरातल पर उतारने की तैयारी में जुट गया है। नए अध्यादेश में पीएचडी में प्रवेश के लिए तीन श्रेणियां दी गई हैं। इसमें पूर्णकालिक शोधार्थी, अंशकालिक शोधार्थी और अंतरराष्ट्रीय शोधार्थी शामिल हैं।






पूर्णकालिक शोधकर्ताओं को विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित शोध प्रवेश परीक्षा (आरईटी) और साक्षात्कार में शामिल होना होगा। विश्वविद्यालय या संबद्ध कॉलेजों के नियमित शिक्षक पूर्णकालिक शोध निदेशक के दर्जे के लिए पात्र हैं।


इसके साथ ही नए पीएचडी अध्यादेश स्थायी पद पर चयनित पूर्णकालिक शोधकर्ताओं को आवासीय अवधि के रूप में विश्वविद्यालय में कम से कम दो साल पूरा करने के बाद अंशकालिक स्थिति में परिवर्तित करने की अनुमति देता है। शोधकर्ता को विभागीय अनुसंधान समिति (डीआरसी) और कुलपति से अनुमोदन लेना होगा।


अंशकालिक शोधार्थी को देना होगा एनओसी

नए अध्यादेश में अंशकालिक शोधकर्ताओं के लिए विशिष्ट मानदंड स्थापित किए गए हैं। एक उम्मीदवार को अंशकालिक माना जा सकता है यदि वह नियोजित (कार्यरत) है। उसे अपने नियोक्ता से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) जमा करना होगा। एनओसी में उम्मीदवार को अंशकालिक अध्ययन की अनुमति, शोध के लिए पर्याप्त समय की अनुमति और पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए आवश्यक होने पर ड्यूटी राहत के लिए तत्परता का संकेत देना चाहिए।




अंशकालिक पीएचडी के लिए उम्मीदवारों का चयन एक अलग चयन प्रक्रिया द्वारा होगा, जिसमें राइट-अप, कार्य अनुभव, शैक्षणिक सूचकांक और एक साक्षात्कार शामिल होगा। अंशकालिक शोधकर्ताओं को पर्यवेक्षकों के लिए सुपर-न्यूमेरिक माना जाएगा।


कम से कम पांच साल की होनी चाहिए सेवा

अंशकालिक शोधकर्ता के पास मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी निकायों, पब्लिक सेक्टर उपक्रम या सूचीबद्ध निगमों में कम से कम पांच साल की निरंतर वरिष्ठ स्तर की सेवा होनी चाहिए। अंशकालिक पीएचडी के लिए कोई फेलोशिप या छात्रवृत्ति प्रदान नहीं की जाएगी। अंशकालिक शोधकर्ताओं को अपने शोध कार्य के दौरान कम से कम 90 दिनों (आवासीय अवधि) के लिए अनुसंधान स्थान पर रहना होगा और पंजीकरण के दौरान इस आशय का एक अंडरटेकिंग देना होगा। उन्हें शोध सलाहकार समिति (आरएसी) के समक्ष अपने शोध पर्यवेक्षक की ओर से विधिवत हस्ताक्षरित प्रगति रिपोर्ट हर छह महीने में जमा करनी होगी।


पहली बार अंतरराष्ट्रीय शोधार्थियों के लिए प्रावधान

पहली बार, नए पीएचडी अध्यादेश में अंतरराष्ट्रीय शोधार्थियों के लिए प्रावधान किया गया है। इसमें चयन मानदंड वैधानिक/नियामक निकायों की ओर से जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार निर्धारित किए जाएंगे। अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं को शोध प्रवेश परीक्षा (आरईटी) से छूट दी जाएगी और इन सीटों को अतिरिक्त माना जाएगा।




नया पीएचडी अध्यादेश विश्वविद्यालय में शोध, अनुसंधान और अकादमिक उत्कृष्टता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान देगा। यह अध्यादेश विश्वविद्यालय में एक जीवंत शोध समुदाय को बढ़ावा देने और विविध पृष्ठभूमि के शोधार्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इस अध्यादेश का उद्देश्य इच्छुक शोधकर्ताओं की विविध आवश्यकताओं को समायोजित करके विश्वविद्यालय में शैक्षणिक वातावरण और शोध एवं अनुसंधान की संस्कृति को बढ़ावा देना है। -प्रो. पूनम टंडन, कुलपति, डीडीयू।