फर्जी केस में शिक्षिका पर पांच लाख हर्जाना



फर्जी केस में शिक्षिका पर पांच लाख हर्जाना
प्रयागराज,। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्रत्त् विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसरों को फर्जी मुकदमे में फंसाने और उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाली असिस्टेंट प्रोफेसर दीपशिखा सोनकर पर 5 लाख का हर्जाना लगाया है। साथ ही कोर्ट ने प्रोफेसर के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमे की चार्जशीट और मुकदमे की कार्यवाही को रद्द कर दिया है। प्रोफेसर मनमोहन कृष्ण की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने दिया।


कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के बाद 13 फरवरी को फैसला सुरक्षित कर लिया था। शुक्रवार को निर्णय सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि यह ऐसा मामला है जहां कानून की प्रक्रिया का शिकायतकर्ता ने सिर्फ बदला लेने की नीयत से पूरी तरह से दुरुपयोग किया है। कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता ने विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ प्रोफेसरों को फर्जी मुकदमे में फंसाने की कोशिश की जिन्होंने उसे ठीक से पढ़ाने और नियमित रूप से कक्षाएं लेने के लिए कहा था। कोर्ट ने कहा यह ऐसा पहला मामला नहीं है। शिकायतकर्ता, जो की अच्छी तरह से शिक्षित महिला है ने व्यक्तिगत लाभ के लिए कानून का दुरुपयोग किया है।

इन फर्जी मुकदमों की वजह से याची प्रोफेसर और उनके सहयोगियों जो की प्रोफेसर हैं, की प्रतिष्ठा समाज में धूमिल हुई। कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार की फर्जी कानूनी प्रक्रिया को अपनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने शिकायत करने वाली असिस्टेंट प्रोफेसर पर पांच लाख का हर्जाना लगाया है तथा इस हर्ज़ाना की राशि को उसके वेतन से कटौती करने का निर्देश दिया है।

क्या है मामला

मामले के अनुसार इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्रत्त् विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर दीपशिखा सोनकर ने विभाग अध्यक्ष प्रो मनमोहन कृष्ण, प्रो प्रह्लाद और प्रो जावेद अख्तर के खिलाफ यौन उत्पीड़न से लेकर एससी-एसटी तक के तमाम प्रावधानों के तहत आरोप लगाते हुए सात बार फर्जी शिकायतें कीं तथा मुकदमा भी दर्ज कराया। विश्वविद्यालय ने यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच करने के लिए दो बार कमेटी गठित की और दोनों बार कमेटी ने अपनी जांच में पाया की शिकायतें फर्जी हैं। इसके बाद दीपशिखा ने कर्नलगंज थाने में प्रोफेसर के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया। मुकदमे में जांच के बाद पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी। स्पेशल जज एससी-एसटी ने संज्ञान लेते हुए गैर जमानती वारंट जारी किया। जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने इस मामले में विस्तार से सुनवाई के बाद उपरोक्त आदेश के साथ मुकदमा रद्द कर दिया है।