भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (इरडा) ने हाल ही में स्वास्थ्य बीमा से जुड़े नियमों में अहम बदलाव किए हैं। इसके तहत पहले से मौजूद बीमारी यानी पीईडी को कवर करने की समय अवधि को घटा दिया गया है। इसका सीधा फायदा स्वास्थ्य बीमा लेने वाले उपभोक्ताओम को होगा।
अभी तक पॉलिसी के लिए आवेदन करने से चार साल पहले तक की बीमारी को ‘पहले से मौजूद बीमारी’ माना जाता था। अब इस अवधि को घटाकर तीन साल कर दिया गया है। यानी अब पॉलिसी खरीदने से तीन साल से पहले तक की बीमारी पीईडी की श्रेणी में आएंगी लेकिन इसका फायदा तभी मिलेगा जब बीमाधारक ने पॉलिसी लेते वक्त प्रस्ताव फॉर्म खुद भरा हो।
अभी तक पॉलिसी के लिए आवेदन करने से चार साल पहले तक की बीमारी को ‘पहले से मौजूद बीमारी’ माना जाता था। अब इस अवधि को घटाकर तीन साल कर दिया गया है। यानी अब पॉलिसी खरीदने से तीन साल से पहले तक की बीमारी पीईडी की श्रेणी में आएंगी लेकिन इसका फायदा तभी मिलेगा जब बीमाधारक ने पॉलिसी लेते वक्त प्रस्ताव फॉर्म खुद भरा हो।
क्या है प्रपोजल फॉर्म जब भी कोई व्यक्ति स्वास्थ्य बीमा खरीदता है तो बीमा कंपनी एक प्रपोजल फॉर्म भरवाती है। इसमें आवेदक की जीवनशैली से जुड़े तमाम तरह के सवाल पूछे जाते हैं। साथ ही ऐसी कोई बीमारी जिससे आवेदक पीड़ित है, उसका पूरा विवरण मांगा जाता है। इरडा के नियमों के तहत स्वास्थ्य बीमा खरीदने से 36 महीने पहले तक की बीमारियां और चोटें पीईडी की श्रेणी में आएंगी। हाई ब्लड प्रेशर, अस्थमा, थायरायड और डायबिटीज जैसी बीमारियां पीईडी में शुमार होती हैं।
क्लेम में हुई दिक्कत एक हालिया सर्वे में पता चला कि करीब 43 फीसदी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसीधारकों को दावा लेने में संघर्ष करना पड़ता है। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन वर्षों में देश में कई स्वास्थ्य बीमा दावों को या तो खारिज कर दिया गया है या आंशिक रूप से स्वीकृत किया गया। यह सर्वे भारत के 302 जिलों के 39,000 लोगों से बातचीत के आधार पर तैयार किया गया है। दावा रद्द होने के प्रमुख कारणों में पहले से मौजूद बीमारियों का खुलासा न करना और बीमा पात्रता की अधूरी जानकारी होना शामिल है।
कंपनी खारिज कर सकती है दावा बीमा क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि स्वास्थ्य बीमा खरीदते समय पहले से मौजूद बीमारियां अहम मुद्दा है। इन्हें छिपाना नहीं चाहिए। यदि बाद में इनका पता चलता है तो बीमाधारक को बड़ा नुकसान हो सकता है। अगर बीमा कंपनी को प्रपोजल फॉर्म भरते समय पता चल जाए कि आवेदक या पॉलिसी में शामिल किसी सदस्य को कोई बीमारी है तो वह प्रीमियम की राशि बढ़ा सकती है, कोई शर्त जोड़ सकती है या फिर आवेदन को ही खारिज कर सकती है। अगर आवेदक बीमारी को छुपाकर बीमा कवर ले लेता है तो वह क्लेम को खारिज कर सकती है।
यही नहींङ्घ पॉलिसी को भी बंद कर सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि स्वास्थ्य बीमा खरीदने के लिए फॉर्म भर रहे हों तो इसे पूरी तरह से और सही जानकारियों के साथ भरें। प्रपोजल फॉर्म में कोई भी कॉलम खाली न छोड़ें। इस बात का भी विशेष ध्यान रखें कि फॉर्म किसी और शख्स से न भरवाएं। साथ ही किसी और को भी इसे न भरने दें। अगर फॉर्म एक भाषा में है और आप किसी दूसरी भाषा में सवालों के उत्तर दे रहे हैं सुनिश्चित करें कि सवाल आपको सही ढंग से समझाए गए हैं और आपने उन्हें पूरी तरह से समझ लिया है। आपको प्रपोजल फॉर्म में इस बात की घोषणा करनी पड़ेगी। बीमा खरीदते समय में किसी भी जानकारी या तथ्य को छिपाएं नहीं। ऐसा करने से बीमा क्लेम करते समय परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। याद रखें कि फॉर्म में भरे गए सभी विवरण के लिए आवेदक खुद जिम्मेदार होता है। इस जानकारी को क्लेम के दौरान विवादित नहीं किया जा सकता है।
पुरानी बीमारी पर ज्यादा खर्च
बीमा कंपनियां पुरानी बीमारियों को कवर तो करती हैं लेकिन प्रीमियम बढ़ा देती हैं। उदाहरण के लिए अगर कोी व्यक्ति 30 साल का है और परिवार में पत्नी सहित दो बच्चे हैं। अगर वह 10 लाख कवर का प्लान लेता है और पॉलिसी में शामिल सभी सदस्य पूरी तरह स्वस्थ हैं तो उन्हें 24,367 रुपये का प्रीमियम चुकाना होगा। अगर व्यक्ति को हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज की बीमारी है तो प्रीमियम 50 फीसद तक बढ़कर करीब 36,000 रुपये तक हो सकता है। वास्तविक प्रीमियम कितना बढ़ेगा, ये बीमारी की गंभीरता पर निर्भर करता है।
पहले से मौजूद बीमारी किसे माना जाता है
पहले से मौजूद बीमारियों (पीईडी) को बीमा कंपनियां एक निश्चित अवधि के बाद कवर करती हैं, जिसे प्रतीक्षा अवधि (वेटिंग पीरियड) कहा जाता है। यह अवधि 2 से 4 साल तक की हो सकती है, जो बीमारी के हिसाब से तय होती है। इस अवधि के खत्म होने के बाद बीमा कंपनियां संबंधित बीमारी के इलाज की सुविधा देती हैं। नियमों के तहत अगर बीमाधारक को पॉलिसी खरीदने के तीन महीने बाद किसी बीमारी का पता चलता है तो वह पहले से मौजूद बीमारी नहीं मानी जाएगी, लेकिन अगर बीमाधारक को पॉलिसी लेने के तीन महीने के भीतर हार्ट अटैक आता है या डायबिटीज का पता चलता है तो इसे पहले से मौजूद बीमारी माना जाएगा।
... तो दावा खारिज नहीं होगा
इसके साथ ही बीमा नियामक ने मोरेटोरियम अवधि को 8 साल से घटाकर 5 साल कर दिया है। मोरेटोरियम अवधि का मतलब है कि अगर आपने स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी पांच साल तक जारी रख ली है तो फिर बीमा कंपनी किसी बीमारी के दावे से मना नहीं कर सकती है। ऐसे में सभी तरह की प्रतीक्षा अवधि समाप्त मानी जाएगी। अगर किसी व्यक्ति ने पॉलिसी पोर्ट कराई है तो पुरानी कंपनी की पॉलिसी अवधि भी मोरेटोरियम अवधि में शामिल होगी। नए नियमों को लागू कर दिया गया है।
एक प्रति अपने पास रखें
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि हस्ताक्षर किए गए प्रपोजल फॉर्म की एक प्रति अपने पास जरूर रखनी चाहिए। इसमें आपके रिकॉर्ड के लिए आपसी सहमति से तय की गई कोई भी घोषणा और शर्तें हो सकती हैं। यह भी पूछें कि अगर आगे चलकर कोई बीमारी सामने आती है या किसी तरह की सेहत संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैं तो पॉलिसी पर क्या असर पड़ेगा और उसकी विकल्प क्या होगा।
किसी और से न भरवाएं फॉर्म, कोई कॉलम खाली न छोड़ें