प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि नियमितीकरण में देरी के लिए कर्मचारी को न दोषी ठहराया जा सकता है और न ही उसे किसी सेवा लाभ से वंचित किया जा सकता है। 2005 को नियमितीकरण की योग्यता हासिल करने वाले कर्मचारी पुरानी पेंशन के हकदार हैं। भले ही सरकार ने उन्हें निर्धारित तिथि के बाद नियमित किया हो। क्योंकि, नियमितीकरण में देरी के लिए सरकार दोषी है।
इस टिप्पणी संग न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की अदालत ने राज्य सरकार के दावे को खारिज करते हुए अपील निस्तारित कर दी। राज्य सरकार ने प्रयागराज नगर निगम में तैनात रहे अवर अभियंता चंद्र
मोहन यादव, विनय कुमार सक्सेना, सुरेश चंद्र लवाणिया और कृष्ण मोहन माथुर के पक्ष में पारित एकल पीठ के उस आदेश को चुनौती दी थी। उसमें अदालत ने सभी सेवानिवृत्ति याचियों को उनकी नियुक्ति की तिथि से पुरानी पेंशन योजना का हकदार माना था। हालांकि, खंडपीठ ने कर्मचारियों को नियमितीकरण की योग्यता हासिल करने की तिथि से पुरानी पेंशन का हकदार माना है।
कर्मचारियों की दलील थी कि वे 1987 में संविदा या अस्थायी आधार पर नियुक्त हुए थे। 1995 में उन्हें शासनादेश के आधार पर अस्थायी
नियुक्ति दी गई थी। सेवा में तीन साल पूरे करने और आवश्यक शैक्षणिक योग्यता रखने के बावजूद उन्हें 2008 में नियमित किया गया। ऐसे में उन्हें नई पेंशन योजना के अधीन कर दिया गया। जबकि, उन्हें उनकी मौलिक नियुक्ति की तारीख से पुरानी पेंशन का लाभ दिया जाना चाहिए।
वहीं, सरकार ने दलील दी कि इन कर्मियों का नियमितीकरण एक अप्रैल 2005 के बाद हुआ था। ऐसे में ये कर्मचारी पुरानी पेंशन के हकदार नहीं हैं। कोर्ट ने सरकार के दावे को खारिज करते हुए कहा कि नियमानुसार 10 अप्रैल 2003 से पहले याचियों की नियमितीकरण की पात्रता बन चुकी थी। राज्य की लापरवाही या विलंब का खामियाजा कर्मचारी नहीं भुगतेंगे