हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार को बड़ी राहत देते हुए बेसिक शिक्षा विभाग के स्कूलों का विलय करने के विरुद्ध दाखिल याचिकाओं को खारिज कर दिया है।
कोर्ट ने निर्णय में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत अनिवार्य और निःशुल्क शिक्षा का अधिकार तो है लेकिन यह नहीं माना जा सकता है कि अनुच्छेद 21ए के तहत राज्य की यह जिम्मेदारी है कि वह छह से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को एक किमी की दूरी के भीतर ही निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करे।
यह निर्णय न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सीतापुर की कृष्णा कुमारी समेत 51 स्कूली बच्चों और अन्य रिट याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए सोमवार को पारित किया है। शुक्रवार को सुनवाई पूरी कर कोर्ट ने निर्णय सुरक्षित कर लिया था। याचियों की दलील दी थी कि 16 जून 2025 का स्कूलों के विलय का सरकार का निर्णय मनमाना और अवैध है। यह अनुच्छेद 21 ए के विरुद्ध भी है। याचिकाओं में कहा गया था कि शिक्षा का अधिकार कानून के तहत बने नियम में 300 की आबादी और आबादी के एक किमी दायरे में 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए एक स्कूल की स्थापना का दायित्व राज्य सरकार पर है।
..ऐसे तो सरकार को आठ लाख स्कूल खोलने होंगे
न्यायालय ने कहा कि नियमों की अधिवक्ताओं ने जो व्याख्या की है, उसे माना जाय तो प्रदेश की आबादी करीब 24 करोड़ है। इस तरह सरकार को आठ लाख स्कूल खोलने पड़ेंगे। व्याख्या सिद्धांतों को अपनाते हुए नियम की व्याख्या ऐसे करनी चाहिए कि प्रभावी और कार्यशील हो, न कि एक मृतप्राय प्रावधान बन के रह जाए।