लखनऊ, । पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यकाल में नियम-कानूनों को ताक पर रखकर बिना अहर्ता और फर्जी डिग्री वाले विशेष शिक्षकों की भर्ती की गई थी। इसका परत दर परत खुलासा उच्च स्तरीय जांच में होने लगा है।
हालत यह है कि ज्यादातर विशेष शिक्षकों के पास टेट (टीईटी) पास होने तक के प्रमाण पत्र नहीं हैं। बावजूद इसके 15 वर्षों से अधिक समय से विशेष शिक्षक प्रदेश भर में दिव्यांग बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। विशेष शिक्षकों की फर्जी नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित जांच समिति की जांच में इस बात का खुलासा हुआ है कि प्रदेश भर के 2300 विशेष अध्यापकों में से सैकड़ों ऐसे हैं जो भारतीय पुनर्वास परिषद द्वारा तय मानकों की परिधि में आते ही नहीं हैं और बिना जरूरी डिग्री के ये विशेष बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। नियुक्ति के समय कई विशेष शिक्षकों ने फर्जी डिग्री के माध्यम से समग्र शिक्षा के तहत नौकरियां हासिल की हैं। इतना ही नहीं इस बात का भी खुलासा हुआ है कि बहुसंख्यक विशेष अध्यापक टीईटी पास ही नहीं हैं और दिव्यांग बच्चों को घटिया शिक्षा प्रदान कर रहे हैं जबकि इन विशेष अध्यापकों की नियुक्ति संविदा के आधार पर 11 महीने के लिए की गई और उसके बाद उनकी संविदा का नवीनीकरण लगातार किया जाता रहा। इसमें सबसे आश्चर्य का विषय यह है कि समग्र शिक्षा में लगभग 15 वर्षों से कार्यरत इन अध्यापकों के प्रमाणपत्रों की न कोई जांच कराई गई और न ही टीईटी पास विशेष अध्यापकों को अवसर प्रदान किया गया।
इस बीच जैसे-जैसे यह जांच अपने अन्तिम चरण में पहुंच रही है, बेसिक शिक्षा विभाग में सक्रिय सिण्डीकेट भ्रष्ट विशेष अध्यापकों के समूह एवं कुछ गैर सरकारी संस्थाओं का सहयोग लेकर इस कुचक्र में जुट गए हैं कि इन अध्यापकों को बिना टीईटी की परीक्षा के और बिना कोई जांच कराए ही समायोजन कर लिया जाए भले ही सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति की रिपोर्ट को क्यों न बदलवाना पड़े।
यह था सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सर्वोच्च न्यायालय ने दिव्यांग बच्चों को पढ़ा रहे विशेष शिक्षकों की योग्यता, डिग्री और दक्षता की जांच के लिए तीन सदस्यीय स्क्रीनिंग कमेटी गठित कर जांच करने को कहा है। कोर्ट का आदेश था कि राज्य आयुक्त (दिव्यांगजन) की अध्यक्षता में शिक्षा विभाग के सचिव और भारतीय पुनर्वास परिषद ( आरसीआई) के एक विशेषज्ञ को शामिल कर कमेटी बनाई जाए जो जांच प्रक्रिया पूरी कर अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रेषित करे।
नियम और मानकों की अनदेखी की गई
सूत्रों के अनुसार, प्रदेश के कई जिलों में विशेष शिक्षकों की नियुक्ति में भारी गड़बड़ी हुई है। मौजूदा समय में करीब 25% से अधिक विशेष शिक्षक ऐसे हैं, जो न तो एनसीटीई, न ही दिव्यांगजनों की शिक्षा और पुनर्वास के लिए मानद संस्था भारतीय पुनर्वास परिषद् के मानकों को पूरा करते हैं। इसके बावजूद पूरे प्रदेश में इन विशेष शिक्षकों का अनुबंध हर वर्ष नवीनीकृत किया जा रहा है। बेसिक शिक्षा विभाग में सक्रिय सिण्डीकेट भ्रष्ट विशेष अध्यापकों के समूह एवं कुछ गैर सरकारी संस्थाओं का सहयोग लेकर इस कुचक्र में जुट गए हैं कि इन अध्यापकों को बिना टीईटी परीक्षा के और बिना कोई जांच ही समायोजन कर लिया जाए।
भले ही सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति की रिपोर्ट को क्यों न बदलवाना पड़े।