प्रयागराज, उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग की ओर से चार सितंबर को विज्ञापन संख्या 51 के तहत अशासकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर के 910 पदों पर घोषित कटऑफ को लेकर बहस छिड़ गई है। आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों का कटऑफ अनारक्षित वर्ग से अधिक होने की व्याख्या लोग अपने-अपने तरह से कर रहे हैं।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के शिक्षक और चीफ प्रॉक्टर प्रो. राकेश सिंह ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा है-’शिक्षा सेवा चयन आयोग ने सहायक आचार्य के पदों पर चयन प्रक्रिया के अगले चरण ‘साक्षात्कार’ के लिए शार्ट-लिस्टेड अभ्यर्थियों सूची जारी की है। शार्ट-लिस्टेड अभ्यर्थियों की सूची में अनेक विषयों के कटऑफ में प्रथमदृष्टया चौंकाने वाली विसंगतियां हैं। उदाहरण के लिए हिंदी विषय के लिए अनारक्षित, ईडब्ल्यूएस, ओबीसी का कटऑफ़ क्रमश: 140, 146 और 142 है।
प्रश्न यह है कि यदि अनारक्षित वर्ग सूची सभी वर्गों के लिए खुली है, तो आरक्षित वर्ग का कटऑफ अनारक्षित वर्ग के कटऑफ से अधिक कैसे रखा जा सकता है? यदि कोई ऐसा नियम, जो जारी कटऑफ का विधि सम्मत एवं न्यायपूर्ण औचित्य प्रमाणित कर सके, तो उसे अभ्यर्थियों के सूचनार्थ आयोग की वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाना चाहिए। कटऑफ़ की विसंगति मात्र एक पक्ष है। आयोग पर प्रश्नपत्र निर्माण में घोर लापरवाही और असमानता के आरोप लगे हैं।
इस पोस्ट पर एक यूजर शिव शंकर मौर्य ने प्रतिक्रिया दी है-‘लिखित परीक्षा के परिणाम में अभ्यर्थी को उसी श्रेणी में रखा जाता है जिस श्रेणी में उसने आवेदन किया है। रही बात कटऑफ की तो अनारक्षित वर्ग में पदों (सीटों) की संख्या अधिक होती हैं जिसके फलस्वरूप अधिक अभ्यर्थी को इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है जिससे कटऑफ आरक्षित वर्ग से कम हो जाता हैं। आरक्षण का नियम फाइनल रिजल्ट में लागू होता है।’
आयोग के उपसचिव डॉ. शिवजी मालवीय का कहना है कि आयोग के स्तर से कोई गलती नहीं हुई है। इसके बावजूद जो भी अभ्यर्थी लिखित आपत्ति कर रहे हैं उनका समुचित निस्तारण करने के निर्देश अध्यक्ष और सचिव ने दिए है।