TET विवाद का सच
1. RTE एक्ट 2009
सेक्शन 23(1): शिक्षक भर्ती की न्यूनतम अर्हता तय करने का अधिकार NCTE को दिया गया।
सेक्शन 23(2): RTE लागू होने से पहले के शिक्षकों को भी प्रशिक्षण + TET पूरा करना अनिवार्य, अधिकतम 5 साल छूट का प्रावधान।
2. सरकारों की लापरवाही
2015 तक समयसीमा समाप्त, पर कोई आगाह नहीं किया गया।
10.08.2017 को संशोधन → डेडलाइन 31.03.2019
03.08.2017 को केंद्र सरकार ने पत्र जारी किया – 01.04.2019 के बाद बर्खास्तगी की चेतावनी।
राज्य और केंद्र सरकारें फिर भी चुप रहीं।
3. विवाद की शुरुआत
कुछ राज्यों ने बिना TET प्रोन्नति दी।
* तमिलनाडु & महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक संस्थान और शिक्षक अदालत पहुँचे।
4. सुप्रीम कोर्ट का फैसला
01.04.2019 के बाद बिना TET शिक्षक अर्ह नहीं।
सरकार ने भी कोर्ट में यही पक्ष रखा।
कोर्ट ने आर्टिकल 142 का प्रयोग कर राहत दी:
5 वर्ष से कम सेवा शेष → TET से छूट।
5 वर्ष से अधिक सेवा शेष → 2 वर्ष का अतिरिक्त समय
5. असली दोषी कौन?
सरकारें (केंद्र + राज्य), समय पर संशोधन नहीं किया।
शिक्षकों को आगाह नहीं किया।
भ्रम की स्थिति पैदा होने दी।
NCTE: सिर्फ अकादमिक अथॉरिटी, RTE से बंधा।
सुप्रीम कोर्ट: शिक्षकों को राहत दी।
6. समाधान क्या?
जब तक RTE एक्ट सेक्शन 23(2) में संशोधन नहीं होता, स्थायी हल संभव नहीं।
केंद्र सरकार चाहे तो रिव्यू डाले, लेकिन अंततः संशोधन ज़रूरी।
इसलिए सभी शिक्षक एकजुट होकर राष्ट्रव्यापी आंदोलन करें और सरकार को मजबूर करें कि वह एक्ट में संशोधन करे।
#rana