नई दिल्ली। उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अल्पसंख्यक छात्रों से भेदभाव रोकने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने एक उच्चस्तरीय समिति गठित की है। यह समिति विश्वविद्यालय, कॉलेज में उक्त वर्ग के छात्रों से भेदभाव रोकने और नियमों में बदलाव के लिए आयोग को सुझाव देगी।
यूजीसी के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, समिति विभिन्न मामलों को देखते हुए नियमों में बदलाव की भी अपनी रिपोर्ट में सिफारिश करेगी। इसका मकसद उक्त वर्ग के छात्रों से किसी भी तरह के भेदभाव को रोकना है, ताकि सभी वर्गों के छात्र कैंपस और हॉस्टल में बिना डर मिल-जुलकर अपनी पढ़ाई पूरी करें आरक्षित वर्ग के छात्रों को कैंपस में बेहतर और बिना भेदभाव वाला माहौल उपलब्ध करवाना सबकी जिम्मेदारी है।
अधिकारी ने बताया कि यूजीसी ने अप्रैल 2023 में एस, एसटी, अन्य पिछड़ा वर्ग और महिला प्रतिनिधियों की छात्र शिकायत निवारण समितियों का अध्यक्ष या सदस्य नियुक्त करना अनिवार्य भी किया है। इससे पहले वर्ष 2012 में यूजीसी (उच्च शिक्षण संस्थानों में समानता को बढ़ावा देना) नियम जारी किए थे। इन नियमों में सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिले के मामले में एससी और एसटी समुदाय के किसी भी छात्र से भेदभाव न करने का प्रावधान है। इसमें इन संस्थानों में जाति, नस्ल, धर्म, भाषा, लिंग या शारीरिक अक्षमता के आधार पर किसी भी छात्र का उत्पीड़न रोकने तथा ऐसा करने वाले लोगों व प्राधिकारियों को दंडित करने का भी प्रावधान है।
दरअसल, पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने शैक्षणिक संस्थानों में भेदभाव के कारण आत्महत्या करने वाले रोहित वेमुला और पायल तडवी की माताओं की ओर से दाखिल याचिका पर यूजीसी से इस दिशा में उठाए गए कदमों का विवरण मांगा है।