तीसरे पड़ाव में पहुंच चुके शिक्षामित्रों का दर्द सुनने वाला कोई नहीं



चित्रकूट (एसएनबी)। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण आंचल में बेसिक शिक्षा विभाग में दो दशक पूर्व से बेहतर सेवा दे रहे शिक्षामित्रों का दर्द किसी भी सरकार से छुपा नहीं है। सब कुछ जानकर भी सरकार अनजान बनी हुई है। कई शिक्षामित्र अपनी जान भी गवां चुके हैं। लेकिन सरकार उनकी सुध नहीं ले रही है।



कम मानदेय पर शिक्षामित्रों इतने समय से इतने कम के परिवारों का नहीं हो पारिश्रमिक में बच्चों को रहा गुजर बसर शिक्षामित्रों ने प्रदेश के कारणों से सरकार से लगायी गुहार





शिक्षा मित्रों की जमीनी हकीकत जानने पर पता चला कि गांव, गरीब, किसान, मजदूर का युवा मेधावी बेटा, बेटी, बहू का वर्ष 2000-01 बीजेपी काल में शिक्षामित्र के रूप में चयन हुआ था, किन्तु बीजेपी सरकार की बचकानी हरकतों और बदले की राजनीति 1,58,000 शिक्षा मित्रों का जीवन नर्क से भी बदतर है। लम्बे समय से नौकरी की उम्मीद का दिया अब बुझने लगा है। सुनहरे सपने देखते देखते आंखें पथरा गई हैं, अरमान चकनाचूर हो गये हैं, अच्छे दिन के इन्तजार में कर्ज, मर्ज और फर्ज के बोझ तले दबा ये तबका आज भी अच्छे दिनों की आश में जिन्दा है और इस बार के चुनावी समर में सत्ता के गलियारे में तरकश के अन्तिम तीर से आरमार और धारमार की लड़ाई लड़ने की तैयारी में है, अब देखना दिलचस्प होगा कि गांव की गलियों का ये बड़ा तबका विधानसभा चुनावी समर में किस ओर करवट बदलेंगे। उम्र के तीसरे पड़ाव पर पहुंच चुकी शिक्षा मित्र विमला यादव अपने जमाने में अपने पंचायत में सबसे ज्यादा योग्य



थी हाईस्कूल 1996 में 74 प्रतिशत, इंटर फर्स्ट डिवीजन, हिन्दी और सामाजिक विषय से डबल एमए, फर्स्ट डिवीजन टेट पास शिक्षामित्र बताती हैं कि बेटे की तबियत खराब होने से दो लाख का कर्ज अब सात लाख हो गया जमीन बेचने की नौबत आ गई है। शिक्षामित्र नेता सर्वेश यादव बताते हैं कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बी. कॉम करने के बाद सीए की तैयारी छोड़कर शिक्षा मित्र बने, दो दशक बेहतर सेवा देने के बाद भी इस कमर तोड़ महंगाई में घर परिवार का भरण पोषण असम्भव है। बेहतर परवरिश बूढ़े मां बाप की सेवा पत्नी के अरमान कैसे पूरे करें। इन भ्रष्ट सरकारों और विधि निर्माताओं ने शिक्षामित्रों की अनदेखी करके तीन पीढ़ियों को नर्क सा जीवन जीने को मजबूर कर दिया है। समय रहते सरकार नहीं चेती तो अंजाम भयावह होंगे।
शिक्षा मित्र ब्रजेश पांडेय ने बताया कि मां-बाप ने मजदूरी करके पढ़ाया अब अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल के बाद मजदूरी करना पड़ रहा है। बड़ी बेटी बीएससी पास है, उसके हाथ पीले करने के लिए बीबी के गहने गिरवी रख दिए हैं। अब ब्याज की किस्त भगवान भरोसे और दांस्ता बताते बताते आंखों में आंसू आ गये। शिक्षा मित्र जागेश्वर प्रसाद बताते हैं कि हमारे पढ़ाये छात्र बेसिक में भी शिक्षक हैं और हम 20 साल सेवा देने के बाद भी सरकार और समाज की नजर में अयोग्य हैं।