Devesh Sharma v. Union of India and ors के जजमेंट में BEd के विरुद्ध माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने क्या क्या प्रमुखता से कहा है :-✍️ हिमांशु राणा की कलम से, पढ़ें विस्तार से...


Devesh Sharma v. Union of India and ors के जजमेंट में BEd के विरुद्ध माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने क्या क्या प्रमुखता से कहा है :-


The Supreme Court ruled that Bachelor of Education (B.Ed) candidates are ineligible to hold primary school teacher posts.
A Bench of Justices Aniruddha Bose and Sudhanshu Dhulia upheld a Rajasthan High Court decision to quash a 2018 National Council for Teacher Education (NCTE) notification allowing B.Ed candidates to be primary school teachers.
The Court made it clear that B.Ed is in no terms a qualification to teach at the primary level (classes I to V).

जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धुलिया जी की पीठ ने कहा - NCTE का BEd को प्राथमिक शिक्षा के लिए शिक्षक बनाने का notification अवैध है और उसको ख़ारिज करते हुए साफ़ किया कि BEd की qualifications को प्राथमिक लेवल के लिए मान्य नही किया जा सकता है

"The decision of the NCTE to include B.Ed. as a qualification for teachers in a primary school seems arbitrary, unreasonable and in fact has no nexus with the object sought to be achieved by the Act i.e. Right to Education Act, which is to give to children not only free and compulsory but also ‘quality’ education."
The top court further emphasised that elementary education is a fundamental right under Article 21A of the Constitution.
"Free and compulsory education for children becomes meaningless if we make compromise on its ‘quality’. We must recruit the best qualified teachers. A good teacher is the first assurance of ‘quality’ education in a school. Any compromise on the qualification of teachers would necessarily mean a compromise on the ‘quality’ of education," the judgment said.

आगे बताया कि RTE act जो कि मौलिक अधिकारों से जुड़ा हुआ मामला है उसमें BEd को प्राथमिक लेवल के लिए शिक्षक बनना एक दम मनमाना, बिना कोई कारण के और इसका कोई ताल मेल भी नही है कि मौलिक अधिकार यानी प्राथमिक शिक्षा में QUALITY लाई जाए उसके मद्देनज़र notification लाया गया हो, नि: शुल्क एवं अनिवार्य रूप से दी जाने वाली शिक्षा का बच्चों के लिए कोई मतलब नही रह जाएगा इसलिए हमें बेहतर qualified शिक्षक चाहिए होंगे और इस प्रकार से quality education से किसी भी प्रकार का समझौता नही किया जा सकता है इसलिए अच्छे और qualified शिक्षकों से ही quality education की उम्मीद की जा सकती है

After the High Court quashed the notification, the NCTE, certain B.Ed candidates, eligible diploma holders and the Union government moved the top court in appeal.
The Supreme Court noted that as per NCTE norms, the necessary qualification for primary teacher posts was a Diploma in Elementary Education (D.El.Ed.).
"A candidate who has a diploma in elementary education (D.El.Ed.) is trained to handle students at this level, as he has undergone a pedagogical course specifically designed for this purpose ... A person who has a B.Ed. qualification has been trained to impart teaching to secondary and higher secondary level of students. He is not expected to impart training to primary level students," the Bench explained.

राजस्थान उच्च न्यायालय से नोटिफ़िकेशन निरस्त होने के पश्चात BEd डिग्री धारक, केंद्र सरकार और NCTE ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय का रूख किया जिस पर SC ने कहा कि NCTE के norms के अनुसार DElEd का डिप्लोमा ही अनिवार्य रूप से न्यूनतम qualification है, ऐसे अभ्यर्थी जिनके पास ये डिप्लोमा है वह सही मायने में trained हैं बच्चों को सम्भालने हेतु क्योंकि DElEd का पाठ्यक्रम उसी शैक्षणिक रूप में तैयार किया गया है जबकि BEd में जो training दी जाती है वो उच्च शिक्षा के लिए दी जाती है

It added that the NCTE notification was flawed since it relied on a communication from the Central government with respect to Kendriya Vidyalayas. The Central government had earlier written to the NCTE asking it to allow B.Ed teachers to hold primary teacher posts in view of a shortage in candidates.
The Court, however, stressed that B.Ed and diploma in education holders cannot be equated.

कोर्ट ने ये भी कहा कि NCTE का notification एक त्रुटि थी क्योंकि इसमें केंद्रीय विद्यालयों की बात केंद्र सरकार से चल रही थी हालाँकि केंद्र सरकार ने पूर्व में NCTE को लिखा था (सबसे बड़ी ग़लती थी ये लिखित में नही दे सकते थे क्योंकि इन्हें अधिकार नही है) कि अगर डिप्लोमा वाले अभ्यर्थी कम हैं तो BEd के लिए सोचा जाए लेकिन कोर्ट ने साफ़ किया कि BEd और डिप्लोमा को बराबर नही कर सकते हैं

"B.Ed. is not a qualification for teaching at Primary level of classes, much less a better or higher qualification, in context of Primary classes. This finding is self-evident in the very admission of NCTE which mandates that all B.Ed. qualified teachers who are appointed to teach Primary level classes must mandatorily undergo a pedagogical course for elementary classes within two years of their appointment."

NCTE का ये तर्क कि BEd को दो साल के अंदर प्राथमिक शिक्षा के लिए शैक्षणिक रूप से तैयार करने के लिए शैक्षणिक कोर्स यानी ब्रिज कोर्स करना होगा यही काफ़ी है कि BEd elementary edu के लिए न होकर उच्च शिक्षा के लिए है

It added that "policy decisions" of the Central government that usually bind the NCTE can be reviewed if they are arbitrary and irrational.

केंद्र सरकार द्वारा लिए जाने वाले पॉलिसी decisions जो कि NCTE के लिए bounding होते हैं उन्हें वापिस लिया जा सकता है अगर वे मनमाने और बिना किसी तर्क के हो तो

"The decision to include B.Ed. as a qualification is not an independent decision of NCTE, but it was the decision of the Central Government and NCTE was simply directed to carry it out ... in the larger context of the matter, we cannot even see this as a policy decision ... we must say that this decision is not correct as it is contrary to the purpose of the (Right to Education) Act," the bench said.
The Central government's decision had failed to take into consideration 'objective realities', the Court added.

BEd को शामिल करना केवल NCTE का ही नही केंद्र सरकार का भी निर्णय था और NCTE ने केवल केंद्र सरकार के इशारे पर कार्य किया ये केवल EPMPLOYMENT provide करने के मक़सद से था इसमें किसी भी प्रकार से RTE के goals को achieve करना मक़सद नही था


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हालाँकि बाबुओं की ग़लती तो है ही लेकिन BEd वालों को भी भर भर कर कोसा है निर्णय में और ब्रिज कोर्स पर ही सवालिया निशान है अब बचा कैसे जाए ये तो देखा जाएगा लेकिन जस्टिस ललित के कुछ तर्क आकाश पटेल की याचिका की कुछ प्रेयर को set a side करती हैं तो वहीं जस्टिस बोस के कुछ तर्क BEd के काफ़ी against हैं, आकाश पटेल की याचिका की प्रेयर काफ़ी solid हैं बाक़ी ये पनवाड़ी गंजेडी जो नेता है न तुम्हारे लीगल टीम के नाम पर जो ढकोस रहे हैं उन्हें बता दूँ कि सुधार जाओ personal हुए न तो ध्यान रखना पानी नही मिलेगा

#rana