सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य की हत्या में आइएस के दो आतंकी दोषी


संवाददाता, लखनऊ काकोरी में 2017 में एटीएस से मुठभेड़ में मारे गए आतंकी मोहम्मद सैफुल्लाह के साथी आतिफ मुजफ्फर व मोहम्मद फैसल को विशेष न्यायाधीश एनआइए एटीएस दिनेश कुमार मिश्र ने सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य की हत्या तथा आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने दोषी करार दिया है। एनआइए कोर्ट के न्यायाधीश दोनों आतंकियों की 11 सितंबर को सजा सुनाएंगे।

इस मामले की रिपोर्ट वादी अक्षय शुक्ला ने कानपुर के चकेरी थाने में दर्ज कराई थी। उनके पिता रमेश बाबू शुक्ला स्वामी आत्मप्रकाश ब्रह्मचारी स्कूल से सेवानिवृत्त हो गए थे। हालांकि सेवानिवृत्ति के बाद भी वह शिक्षण कार्य कर रहे थे। उनके मुताबिक दिनांक 24 अक्टूबर 2016



को रमेश बाबू स्कूल से पढ़ाकर आ रहे थे, तो किसी व्यक्ति ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। मामले में आतंकियों की संलिप्ता को देखते हुए उक्त प्रकरण की विवेचना एटीएस की स्थानांतरित हुई। जिस पर एटीएस ने विवेचना प्रारम्भ की थी। दो अभियुक्त भोपाल व कानपुर से गिरफ्तार किए गए थे।



विवेचना के दौरान यह तथ्य आया कि अभियुक्तगण आतिफ मुजफ्फर और मोहम्मद फैसल प्रतिबंधित आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट से जुड़े है। इनका एक साथी मो. सैफुल्लाह सात मार्च 2017 में लखनऊ में हुई मुठभेड़ में मारा गया। आतंकी मो. सैफुल्लाह के पास से आठ पिस्टल व 630 कारतूस तथा अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं के साथ हत्या में प्रयुक्त मोटरसाइकिल भी बरामद की गई थी। यह मोटरसाइकिल अभियुक्त आतिफ मुजफ्फर के नाम पंजीकृत थी।

केंद्रीय विधि विज्ञान प्रयोगशाला, चंडीगढ़ से प्राप्त रिपोर्ट से हाजी कालौनी, लखनऊ से बरामद पिस्टलों में से एक पिस्टल का संबंध मृतक रमेश बाबू शुक्ला के शरीर से बरामद गोली से होना पाया गया है। 

इस बीच सात मार्च 2017 को एक अन्य रिपोर्ट विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के अंतर्गत मध्य प्रदेश के उज्जैन थाना जीआरपी ने दर्ज की, जिसमें ट्रेन के गार्ड ने अज्ञात लोगों के विरुद्ध विस्फोट करने का आरोप लगाया था। ऐसे में चकेरी के मामले की जांच भी नवंबर 2017 को एनआइए को सौंप दी गई। एनआइए ने मूल एफआइआर को आधार बनाते हुए नया मुकदमा दर्ज किया और जांच शुरू कर पड़ताल शुरू की एनआइए को पता चला कि दहशत फैलाने के लिए ही तिफ मुजफ्फर और मोहम्मद फैसल ने सेवानिवृत प्रधानाचार्य की हत्या कर दी।




विशेष लोक अभियोजक कमल किशोर शर्मा व एमके सिंह ने न्यायालय को बताया कि दोनों अभियुक्त एक दूसरे के संपर्क में थे। दोनों की मोबाइल लोकेशन भी घटनास्थल के पास पाई गई। सात मार्च 2017 को लखनऊ में मारे गए अभियुक्तों को एक अन्य न्यायालय द्वारा पूर्व में मृत्यदंड भी दिया जा चुका है। अभियोजन की और से 26 गवाहों को पेश किया गया