मदरसों पर मुख्यमंत्री से लेंगे मार्गदर्शन, सीसीएसयू की सूची से बाहर होगा मदरसा बोर्ड


हाईकोर्ट द्वारा यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट 2004 को खत्म किये जाने और मदरसों की शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए इनमें पढ़ रहे बच्चों को अन्य विद्यालयों में स्थानांतरित किये जाने के आदेश को लेकर प्रदेश का अल्पसंख्यक कल्याण विभाग भी मंथन में जुट गया है। प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने हिन्दुस्तान से बातचीत में कहा कि हाईकोर्ट के इस आदेश पर विभाग के अधिकारी अध्ययन कर रहे हैं। मुख्यमंत्री से मुलाकात करके अदालत के इस आदेश के बारे में उनका मार्गदर्शन प्राप्त किया जाएगा।


उधर, यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड भी अपनी आपात बैठक बुलाने के बारे में चिंतन कर रहा है। बोर्ड के चेयरमैन डा.इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा कि चूंकि लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगी हुई है इसलिए बोर्ड की आपात बैठक बुलाया जाना उचित होगा या नहीं, इस पर विधि विशेषज्ञों से सलाह करके जल्द ही निर्णय लिया जाएगा। हाईकोर्ट ने जिस यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट को खत्म किया है दरअसल उसी एक्ट से ही मदरसा बोर्ड संचालित होता है।

हाईकोर्ट के इस फैसले से न केवल यूपी मदरसा बोर्ड के अस्तित्व पर सवाल उठ गया है बल्कि 16 हजार 543 मदरसों की मुंशी, मौलवी, आलिम, फाजिल यानि हाईस्कूल, इण्टर, स्नातक, पीजी आदि कक्षाओं में पढ़ रहे लाखों छात्र-छात्राओं का भविष्य भी सवालों के दायरे में आ गया है। इनमें से 560 मदरसों को अनुदान मिलता है बाकी 15 हजार 983 मदरसे स्थायी या अस्थायी तौर पर यूपी मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त हैं।

इन 560 अनुदानित मदरसों में पठन पाठन करवा रहे 9 हजार 646 शिक्षक सरकारी वेतन पाते हैं। आल इण्डिया टीचर्स एसोसिएशन मदारिस-ए-अरबिया के राष्ट्रीय महासचिव वहीदुल्लाह खान सईदी का कहना है कि 9 हजार 646 मदरसा शिक्षकों की सरकारी नौकरी भी खतरे में पड़ गयी है। 7 हजार 442 आधुनिक मदरसों के 21 हजार से अधिक वह शिक्षक कहां जाएंगे जिन्हें पिछले छह साल से मानदेय नहीं मिल पा रहा।

न्यायपालिका करे पुनर्विचार जवाद मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना सैय्यद कल्बे जवाद ने कहा कि न्यायपालिका को पुनर्विचार करना चाहिए। मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ कैसे हो सकती है? जबकि सरकार मदरसों के अलावा अन्य धार्मिक संस्थानों को आर्थिक सहायता देती है। मौलाना ने कहा कि अनुच्छेद 30 के तहत हमें अपनी धार्मिक संस्थाएं स्थापित करने की आज़ादी हासिल है,ठीक वैसे ही जैसे अन्य धर्मों और ़कौमों को हासिल है। उन्होंने आगे कहा कि सरकार को धार्मिक नहीं बल्कि उसकी विचारधारा धर्मनिरपेक्ष होनी चाहिए और उसे सभी के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। मौलाना ने कहा कि कोर्ट या सरकार धार्मिक शिक्षा पर रोक नहीं लगा सकती बल्कि शिक्षा में सुधार के लिए सुझाव दे सकती है।



हर साल 60 हजार पास करते हैं कामिल-फाजिल

हाईकोर्ट के फैसले के बाद यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन चौ.चरण सिंह विवि की प्रवेश सूची से भी बाहर हो जाएगा। विवि ने मदरसा बोर्ड को स्नातक प्रथम वर्ष में प्रवेश के लिए वैध बोर्ड की सूची में शुमार कर रखा है। मदरसा बोर्ड से उत्तीर्ण छात्रों को चौ.चरण सिंह विवि स्नातक प्रथम वर्ष में प्रवेश देता है। प्रत्येक सत्र में इस बोर्ड से उत्तीर्ण छात्रों के सीसीएसयू में प्रवेश लेने वालों की संख्या चार सौ होती है। चूंकि हाईकोर्ट ने अधिनियम को अवैध घोषित कर दिया है और सुप्रीम कोर्ट से इस आदेश पर कोई स्टे नहीं होता तो जुलाई सत्र में सीसीएसयू से यह बोर्ड प्रवेश सूची से बाहर हो जाएगा।

मेरठ मंडल में3600 बच्चे होंगे प्रभावित

मेरठ, बिजनौर, सहारनपुर, बुलंदशहर, बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली और हापुड़ में 11 मदरसे उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 के से अनुदान प्राप्त हैं। उक्त जिलों के इन मदरसों में 36 सौ विद्यार्थी पंजीकृत हैं। हाईकोर्ट के फैसले के बाद इन जिलों में 36 सौ विद्यार्थियों को निर्देशों के अनुसार अन्य स्कूलों में स्थानांतरित करना होगा। इन जिलों में 1193 मदरसे ऐसे हैं जिन्हें कोई अनुदान नहीं मिलता। ऐसे में इन मदरसों के छात्रों पर कोई असर नहीं होगा। मेरठ के मदरसों के प्रधानाचार्यों मुफ्ती रिजवान एवं मोहम्मद शम्स कादरी के अनुसार हाईकोर्ट ने अपना निर्णय दिया है।

प्रदेश में करीब एक हजार उच्च आलिया स्तर के मदरसे हैं, जिनमें हर साल 60 हजार युवा कामिल-फाजिल की परीक्षा पास करते हैं। इन्हें केवल मदरसों में अध्यापन का ही कार्य मिल पाता है। कामिल-फाजिल की मान्यता न होने के कारण इसे पास करने वाले युवा इस डिग्री का उपयोग नहीं कर पाते। यूपी मदरसा शिक्षा परिषद ने इसका प्रस्ताव सरकार को भेजा था। इसमें कामिल को यूजी, फाजिल को पीजी के समकक्ष मान्यता देने की बात की गई थी।