पूर्व माध्यमिक शिक्षा निदेशक बासुदेव को राहत

प्रयागराज। पूर्व माध्यमिक शिक्षा निदेशक बासुदेव यादव को आय से अधिक संपत्ति के मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज मुकदमे में हाईकोर्ट से राहत मिली है। कोर्ट ने बासुदेव यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा दी गई अभियोजन स्वीकृति का आदेश गैर कानूनी करार देते हुए रद्द कर दिया है।



साथ ही सरकार को यह निर्देश दिया है कि दो माह के भीतर नियमानुसार नए सिरे से आदेश पारित किया जाए। बासुदेव यादव की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद की खंडपीठ ने दिया है।


पूर्व माध्यमिक शिक्षा निदेशक बासुदेव यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति जमा करने की शिकायत पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा जांच कराई गई। जांच में एक सितंबर 1978 से 31 मार्च 2014 के बीच उनके ज्ञात आय के स्रोत से अधिक संपत्ति जमा करने के मौखिक व दस्तावेजी साक्ष्य मिले। जिसके आधार पर सक्षम प्राधिकारी विशेष सचिव उत्तर प्रदेश सरकार ने भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत बासुदेव यादव के खिलाफ मुकदमा चलाए जाने की अभियोजन स्वीकृति 29 दिसंबर 2023 को दे दी।


इस आदेश को बासुदेव यादव ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनौती दी। कहा गया कि अभियोजन स्वीकृति भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 के तहत देने के बजाय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत दी गई है जो की अवैधानिक है। विशेष सचिव ने आदेश पारित करते समय विवेक का प्रयोग नहीं किया। प्रदेश सरकार की ओर से इसके जवाब में कहा गया कि आदेश पारित करते समय लिपिकीय त्रुटि के कारण अभियोजन स्वीकृति धारा 19 भ्रष्टाचार अधिनियम के बजाय 197 सीआरपीसी टाइप हो गया जिसे कि बाद में 18 अप्रैल 2024 को संशोधन पत्र जारी करते हुए धारा 197 सीआरपीसी और धारा 19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम दोनों के तहत अभियोजन स्वीकृति प्रदान की गई। इसलिए आदेश उचित व वैधानिक है।


कोर्ट ने कहा कि विशेष सचिव ने आदेश पारित करते समय अपने विवेक का प्रयोग नहीं किया और जल्दबाजी में तथा चलताऊ तरीके से आदेश पारित कर दिया। जब इस मामले को अदालत में चुनौती दी गई तो इस खामी को सुधारने के लिए 18 अप्रैल को संशोधन पत्र जारी किया गया । उसमें भी बड़े चलताऊ तरीके से दोनों धाराओं में अभियोजन स्वीकृति दे दी गई। कोर्ट ने कहा कि कानून की नजर में यह आदेश अवैधानिक है तथा रद्द होने योग्य है। कोर्ट ने 29 दिसंबर 2023 और 18 अप्रैल 2024 के दोनों आदेशों को रद्द करते हुए प्रदेश सरकार से कहा है कि वह दो माह में नए सिरे से नियमानुसार आदेश पारित करे।