फर्जी शिक्षक की सेवा विभाग ने की समाप्त, 21 बर्षो से कर रहा था नौकरी,ऐसे पकडी गई हेराफेरी


अलीगढ़. अलीगढ जिले के विकास खण्ड विजौली में एक फर्जी शिक्षक को बर्खास्त काने में बेसिक शिक्षा विभाग को 21 बर्ष का समय लग गया. इन 21 बर्षों में इस फर्जी शिक्षक ने करोडों रूपया प्राप्त कर लिया और शिकायत कर्ता न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खाता रहा. आखिर सत्य की जीत हुई और इस फर्जी शिक्षक की सेवा समाप्त हो ही गईं. शिकायत कर्ता का कहना है कि मुझे संतुष्टि तभी मिलेगी जब इस शिक्षक को जेल भेजा जाऐगा और इसने अब तक जो वेतन प्राप्त किया है. उसकी रिकवरी भी की जाऐगी.



अलीगढ जिले के गांव खेडा नरायनसिंह के निवासी प्रदीप पाराशर के पिता की मृत्यु होने के बाद अनुकंपा के तहत नियुक्ति सन 2001 में हुई थी. और वह वर्तमान में प्रा0वि0प्रथम बिजौली में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत थे. जब गांव वासियों को जानकारी हुई कि अनुकंपा के तहत शिक्षक की नौकरी के लिए प्रदीप ने जो अंकतालिका लगाई है वह फर्जी है. जिसकी शिकायतें ग्रामीणों ने विभागीय अधिकारियों से सैकडों बार कीं लेकिन विभागीय अधिकारी उसे नजर अंदाज करते रहे उसका कारण क्या रहा इसका जबाब तो विभाग ही दे सकता है. जब कोई कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई तो एक इसी गांव के निर्भीक सुनील कुमार ने इस फर्जी शिक्षक के प्रति कार्रवाई कराने के लिए लामबंद हो गए और आज उनकी इस लडाई में सत्य की जीत हुई और झूठ को झुकना पडा.


जन सूचना अधिकार अधिनियम बना झूठ पकडबाने में सहायक

सुनील कुमार ने जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत विभाग से प्रदीप के पत्राजात प्रापत किए और उनकी असल जानकारी के लिए एक विशेषज्ञ का सहार लिया और हेराफेरी उजागर हो गई.

ऐसे पकडी गई हेराफेरी

सुनील कुमार ने जनसूचना से प्राप्त संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से प्राप्त शास्त्री की डिग्री को एक विशेषज्ञ को जब दिखाया तो वह डिग्री दो बर्षीय सन 1993 की थी, जबकि सन 1993 में तीन बर्षीय डिग्री विश्वविद्यालय से जारी की जा रहीं थी. इसकी शंका के समाधान के लिए सुनील कुमार ने संपूर्णानंद से जनसूचना के माध्यम से जानकारी हासिल की तो खुलासे में जानकारी मिली कि संपूर्णानंद से 1993 में तीन बर्षीय डिग्री जारी की जाती है. साथ ही प्रदीप को जारी अनुक्रमांक विश्वविद्यालय से जारी नहीं किया गया. इसके अलाबा अहम बात यह थी कि प्रदीप ने जिस महाविद्यालय से शास्त्री परीक्षा जारी होना दर्शाया गया था. उस नाम का कोई महाविद्यालय विश्वविद्यालय से संबद्ध ही नहीं था और झूठ पकड में आ गया.

शिक्षा विभाग को मजबूर होना पडा सुनील की कार्रवाई से

सुनील कुमार को साक्ष्य मिलने पर वह तत्कालीन बीएसए से सीधे- सीधे मिले और उनको धमकी दी कि कार्रवाई नहीं होने पर आपके बिरूद्ध भी कार्रवाई करूंगा. बीएसए ने प्रकरण की जांच विश्वविद्यालय भेजी सत्यापन में शिकायत सही पाए जाने पर फर्जी शिक्षक को निलंबित तो कर दिया गया, लेकिन प्रकरण को तत्कालीन बीएसए ने दबाने का प्रयास किया.

तत्कालीन बीएसए ने एक चाल और भी खेली

सुनील ने बताया कि तत्कालीन बीएसए ने प्रदीप से दूसरी अंकतालिक चौधरी चरन सिंह विश्वविद्यालय की मंगा ली और उसका सत्यापन भी भेजा जिससे मामले का लटका दिया जाए और शिकायतकर्ता दबाब में आ जाए. इस दूसरे सत्यापन का जिक्र सेवा समाप्ति के पत्र में बीएसए ने किया भी है. यदि मान भी लिया जाए कि तत्कालीन बीएसए अपनी जगह सही थे तो जब नौकरी संस्कृत विश्वविद्यालय की अंकतालिका से दी गई तो दूसरी यूनीवर्सिटी की अंकतालिका का सत्यापन क्यों कराया गया. यदि नोंकरी दूसरी यूनीवर्सिटी की अंकतालिका से दी गई तो संपूर्णानंद विश्वविद्यालय को सत्यापन क्यों भेजा गया इससे साफ जाहिर है कि विभागीय अधिकारियों ने ऐसा क्यों किया होगा इसका कारण साफ और सभी जानते है.

हाईकोर्ट का डर सता गया विभागीय अधिकारियों को

सुनील कुमार ने बताया कि जब उनको कहीं से न्याय नहीं मिला तो सभी साक्ष्यों सहित उन्होंने उच्च न्यायालय में एक रिट दाखिल की. जिसका जबाब दाखिल करने से पूर्व विभाग को फर्जी शिक्षक की सेवा समाप्ति विभागीय अधिकारियों को करनी पडी ताकि इस प्रकरण की गाज उनके उपर ना गिर जाऐ.