सजा पर सरकारी सेवक को बर्खास्त नहीं कर सकते, बीएसए को दो माह में जांच कर आदेश जारी करने का निर्देश


प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि केवल अपराध की सजा के आधार पर किसी सरकारी सेवक को बर्खास्त नहीं किया जा सकता। ऐसा करने के लिए विभागीय जांच कार्यवाही जरूरी है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के हवाले से कहा कि संविधान के अनुच्छेद 311(2) के तहत किसी सरकारी सेवक को बिना जांच कार्यवाही के बर्खास्त या सेवा से हटाया या उसकी रैंक घटाया नहीं जा सकता। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ल ने मनोज कुमार कटियार की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।



कोर्ट ने इसी के साथ कानपुर देहात के उच्च प्राथमिक विद्यालय रसूलपुर में सहायक अध्यापक को दहेज हत्या में मिली उम्रकैद की सजा पर बीएसए द्वारा बर्खास्त करने के आदेश को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया और अनुच्छेद 311(2) के प्रावधान के अनुसार दो माह में नए सिरे से आदेश करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि याची की सेवा में बहाली व सेवा परिलाभ नए आदेश पर निर्भर करेगा। याची की नियुक्ति 1999 में प्राइमरी स्कूल सराय में सहायक अध्यापक पद पर हुई। 2017 में वह पदोन्नत हो गया। इसके पूर्व 2009 में उसके खिलाफ दहेज हत्या का केस दर्ज हुआ था, जिसमें सत्र न्यायालय ने याची को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई।


इसके बाद जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कानपुर देहात ने याची को बर्खास्त कर दिया, जिसे याचिका में चुनौती दी गई थी। याची के अधिवक्ता धनंजय कुमार मिश्र का कहना था कि अनुच्छेद 311(2) के तहत बीएसए का बर्खास्तगी आदेश अवैध है क्योंकि यह आदेश बिना जांच व नैसर्गिक न्याय का पालन किए बगैर दिया गया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की नजीर पेश की। जिसमें साफ कहा गया है कि सरकारी सेवक को बिना जांच कार्यवाही बर्खास्त नहीं किया जा सकता।