बेसिक का कोहरा, और बेचारे मास्टर जी


*बेसिक का कोहरा*

कोहरा गिरने लगा है, अध्यापक दौड़ते भागते गांवों की ओर निकल पड़ा है। डीजी साहब एसी और हीटर नुमा कमरों से आदेश पर आदेश जारी करते जा रहे हैं। हम अध्यापक भी अब खुद को मजबूत और इन आदेशों का आदी बना चुके हैं। पहले दौर था आदेशों से हम कांप जाते थे अब इतने आदेश रोज जारी होते हैं कि जरा भी रूह नहीं कांपती। जिसकी कांपती होगी कांपे, *अध्यापकों ने तो इस स्वर्णिम अमृत काल में अमृत पान कर ही लिया है।*

ऑनलाइन हाज़िरी के खिलाफ अध्यापक एकजुट है। आज से गिरता कोहरा भी अध्यापकों को चिढ़ा रहा है। मानो कह रहा हो कि अब बताओ हमसे कैसे निपटोगे। एक तरफ डीजी साहब की ऑनलाइन हाजिरी है और एक तरफ गालों पर थपेड़े मारता मैं। अध्यापक बीच में पिसने को तैयार है। अध्यापक बाइक का एक्सीलेटर बढ़ाते जा रहा है, घने कोहरे को चीरते विद्यालय जो पहुंचना है। सामने आते गन्ने की ट्राली से भरे वाहन हमारा उसमें घुस जाने का इंतजार कर रहे हैं। अंततः हम घुस गए, और सड़क पर लेटा अध्यापक यह सोच रहा है आज का वेतन फिर कट गया।

अंतिम सांसे लेता अध्यापक खुद के जिंदा रहने या न रहने के लिए बिल्कुल चिंतित नहीं है, वह चिंतित हैं अगर बच गए तो वेतन आज का कट जाएगा फिर दस हजार देना होगा, पचास चक्कर दफ्तर के लगाने होंगे तब जाकर जुड़ेगा। लेकिन इससे लखनऊ बैठे हुक्मरानों को क्या फर्क पड़ता है अध्यापक तो अंतर्यामी है , अध्यापक तो नारद मुनि है जो पलक झपकते ही ओझल हो जाएगा और विद्यालय में अपने प्रकट हो जाएगा।


*सर्व सुविधा संपन्न अधिकारी जो कार्यालयों में कई घंटे की देरी से पहुंचते है वे अध्यापकों को सुदूर दुर्लभ ग्रामीण इलाकों में समय से पहुंचने का दम भरते हैं। ईश्वर से सद्बुद्धि की कामना हम दिन रात करते हैं।।*