क्षमता 6 की, स्कूल जाने को ऑटो में बैठाए जा रहे 15 से अधिक बच्चे


क्षमता 6 की, स्कूल जाने को ऑटो में बैठाए जा रहे 15 से अधिक बच्चे


वैन और ऑटो मुनाफे के चक्कर में ओवरलोडिंग से गुरेज नहीं कर रहे, स्कूल प्रबंधन बेफिक्र
बिना लाइसेंस के भी वैन


शहर तथा आसपास के स्कूलों में बच्चों को लाने ले जाने में कमर्शियल की जगह निजी वैन का इस्तेमाल होता है। इन पर स्कूलों का नाम तक अंकित नहीं होता है। कुछ स्कूलों की ड्यूटी में लगी वैन खराब हालत में हैं। कई बार तो उनमें बच्चों को धक्का लगाते भी देखा जा सकता है। स्कूल आटो और वैन के चालक अक्सर लापरवाही करते दिखते हैं।

कमाई कम, बच्चे ज्यादा

एक आटो चालक ने बताया कि सुबह बच्चों को लेकर स्कूल आता हूं और स्कूल के बाहर छोड़कर घर चला जाता हूं। वहीं दोबारा छुट्टी के समय आकर बच्चों को घर छोड़ता हूं। कमाई ज्यादा नहीं है, इसलिए अधिक संख्या में बच्चों को लेकर जाना मजबूरी है।


आगरा, ताजनगरी के अधिकांश निजी स्कूलों में बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ हो रहा है। बच्चों को स्कूल लाने और ले जाने की ड्यूटी में लगे वैन और ऑटो मुनाफे के चक्कर में ओवरलोडिंग से गुरेज नहीं कर रहे।

बीते शनिवार को गुरुद्वारा गुरू का ताल पर एक आटो दो ट्रकों के बीच में पिस गया था, जिसमें छह यात्रियों की मौत हो गई। इस घटना के बाद हिन्दुस्तान ने ‘खूनी सड़कें’अभियान चला रखा है। अभियान में जब स्कूली बच्चों के ऑटो और वैन व्यवस्था की पड़ताल की तो पाया कि बच्चों को वैन और ऑटो में क्षमता से अधिक ठूसा जा रहा है। ऑटो में जहां सीटिंग क्षमता तीन से पांच की होती है, वहां 12 से 15 बच्चे सफर कर रहे हैं। वैन की हालत भी ऐसी ही है। आठ की क्षमतावाले वैन में 15-16 बच्चों को भरा जाता है। शहर में स्कूलों के बाहर निजी वैन और ऑटो नियमों की धज्जियां उड़ाते देखे जा सकते हैं ।

प्राइवेट वाहन का इस्तेमाल स्कूल ड्यूटी में लगी अधिकांश वैन तो प्राइवेट नंबर से ही इस्तेमाल की जा रही हैं, जबकि नियम के अनुसार उसे कमर्शियल रूप से प्रयोग करना है। स्कूलों की ओर से भी इसमें लापरवाही की जाती है। जानकारी के अनुसार शहर के स्कूलों में हर दिन करीब 300 निजी वैन से बच्चे आना- जाना करते हैं। इतनी ही संख्या में ऑटो भी स्कूल ड्यूटी करते हैं। स्कूल प्रबंधन इन वैनों का फिटनेस सर्टिफिकेट भी नहीं मांगता है। यह हाल ग्रामीण इलाकों का भी है। 

अधिकांश निजी वैन से बच्चों को लाने-पहुंचाने का काम किया जा रहा है। इसमें नियम के अनुसार आवश्यक न तो मेडिकल किट है और न अन्य सुविधाएं। यह खबर आप बेसिक शिक्षा न्यूज़ डॉट इन पर पढ़ रहे हैं। यहां तक कि स्कूलों के नाम तक नहीं लिखे होते है वैन में। संभागीय परिवहन कार्यालय ने सभी स्कूल प्रबंधन से उनके यहां आने वाले ऑटो और वैनों की संख्या और ब्योरा मांगा था, लेकिन अधिकतर स्कूल ने इसका ब्योरा आज तक नहीं दिया है। ऐसे में लापरवाही का आलम लगातार जारी है।

आप बैठने की क्षमता डबल नहीं कर सकते। स्कूलों को भी इन वाहनों को चिन्हित करना चाहिए। ट्रास्पोर्ट नियमों का पालन करना होगा। इन वाहनों की लिस्टिंग की जाएगी।

आलोक कुमार, एआरटीओ प्रवर्तन