बिना जांच प्रधानाध्यापक को पदानवत करने पर 50 हजार का जुर्माना


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नियमानुसार जांच किए बगैर प्रभारी प्रधानाध्यापक को पदावनत कर मूल वेतन पर भेजने के आदेश को गैरकानूनी करार देते हुए रद्द कर दिया है। साथ ही अध्यापक को उसका सभी बकाया वेतन व एरियर का भुगतान छह सप्ताह में करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने सरकार पर 50 हजार रुपये हर्जाना भी लगाया है जो याची को मुकदमा खर्च के तौर पर देना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि छह सप्ताह में भुगतान नहीं किया जाता तो साढ़े सात प्रतिशत ब्याज की दर से भुगतान करना होगा और सरकार चाहे तो ब्याज की रकम की वसूली जिम्मेदार अधिकारियों से कर सकती है।


यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने हाथरस के प्रदीप कुमार पुंडीर की याचिका स्वीकार करते हुए दिया है। याची के अधिवक्ता जेएन यादव और प्रणवेश का कहना था कि बेसिक शिक्षा अधिकारी हाथरस ने याची के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए उसे दीर्घ दंड से दंडित किया। उसे पदावनत करते हुए मूल पद और मूल वेतन पर भेज दिया गया। याची ने इसके खिलाफ सचिव बेसिक शिक्षा प्रयागराज के समक्ष अपील दाखिल की। सचिव ने भी बीएसए के आदेश को सही ठहराते हुए याची की अपील खारिज कर दी। इस पर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई। हाईकोर्ट ने अधिकारियों से याची के खिलाफ की गई जांच की रिपोर्ट तलब की तो बताया गया कि कोई जांच नहीं की गई है और न ही कोई रिपोर्ट उपलब्ध है। कोर्ट का कहना था कि याची को दीर्घ दंड दिए गए हैं इसलिए उसके खिलाफ कार्यवाही यूपी बेसिक एजुकेशन टीचर सर्विस रूल 1973 और यूपी गवर्नमेंट सर्विस (डिसिप्लिन एंड अपील) रूल्स 1999 के नियमों के तहत की जानी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया इसलिए दोनों आदेश अवैधानिक हैं। कोर्ट ने बीएसए हाथरस और सचिव बेसिक शिक्षा परिषद प्रयागराज के आदेश को रद्द करते हुए याची को उसके पद पर बहाल करने का आदेश दिया है। साथ ही कहा कि याची को जो भी वेतन मिल रहा था, वही वेतन और बकाया का भुगतान छह सप्ताह में किया जाए। याची को हर माह का वेतन नियमित रूप से दिया जाए। छह सप्ताह में उसे वेतन का भुगतान नहीं किया जाता है तो साढ़े सात प्रतिशत ब्याज की दर से वेतन का भुगतान करना होगा और सरकार ब्याज की यह रकम जिम्मेदार अधिकारियों से वसूल सकती है।

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