*वेतनआयोग और मुंगेरीलाल के हसीन सपने_ विजय कुमार "बन्धु"*
◆ दिल्ली चुनाव से पहले बड़े जोर-शोर से यह ऐलान किया गया था कि आठवाँ वेतन आयोग लागू किया जाएगा। सरकारी कर्मचारी और पेंशनधारी वर्ग में उम्मीदों की लहर दौड़ गई थी। लगा कि शायद इस बार सरकार उनकी मेहनत और समर्पण का सही मूल्यांकन करेगी। लेकिन चार से पाँच महीने बीत जाने के बाद भी न तो आयोग का गठन हुआ और न ही कोई ठोस रूपरेखा सामने आई है।
इस बीच अखबारों में आए दिन सुर्खियाँ बनती हैं—"इतना बढ़ेगा वेतन", "इतना मिलेगा बोनस", "इतनी होगी महंगाई भत्ता वृद्धि"—मानो जैसे मुंगेरीलाल अपने सपनों में भविष्य का सुनहरा वेतन पत्र देख रहे हों। लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कहती है। जिन लोगों को अब भी इस आठवें वेतन आयोग से बड़े चमत्कार की उम्मीद है, वे एक बार सातवें वेतन आयोग की सच्चाई जरूर देख लें। कैसे उसमें उम्मीदों को छला गया और कैसे लाभ की जगह नुकसान का बहीखाता सामने आया।
सरकारी तंत्र में वर्षों से कार्यरत कर्मचारी आज असुरक्षा और अनदेखी की भावना से जूझ रहे हैं। न तो पुरानी पेंशन है, न ही स्थिर वेतन संरचना। ऐसे में केवल वादों और घोषणाओं से पेट नहीं भरता, न ही भविष्य सुरक्षित होता है।
अब वक्त आ गया है कि कर्मचारी वर्ग सिर्फ इन खोखले वादों से बहलने के बजाय ठोस संघर्ष का रास्ता अपनाए। केवल चुनावी मौसम में लुभावनी घोषणाएँ करने वालों से जवाब माँगना होगा—आख़िर आयोग का गठन कब होगा? और कब तक ये मुंगेरीलाल वाले सपने दिखाए जाते रहेंगे?
#VijayKumarBandhu
आपके संघर्षो का साथी
*#वेदप्रकाश_आर्यनवेद*