राजकीय महाविद्यालयों में 2016 में विनियमित हुए 290 संविदा शिक्षकों की पुरानी सेवाओं को भी कैरियर एडवांसमेंट स्कीम (कैस) में जोड़ने को लेकर दो धड़े आमने-सामने आ गए हैं। विनियमित शिक्षकों का विरोध कर रहे गुट का दावा है कि पुरानी सेवाओं को जोड़कर सेवागत लाभ प्रदान करने से राजकोष पर लगभग 200 करोड़ रुपये का अनावश्यक वित्तीय भार पड़ेगा। साथ ही भविष्य में अनेक प्रकार की विभागीय विसंगतियां एवं अव्यवस्थाएं भी पैदा होंगी।
लोक सेवा आयोग से चयनित असिस्टेंट प्रोफेसर का कहना है कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने इसी प्रकार के प्रकरण में निर्णय दिया है कि असिस्टेंट प्रोफेसर की पदोन्नति में संविदा काल की सेवा को जोड़ना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश राजकीय महाविद्यालय शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. इंदु प्रकाश सिंह ने उच्च शिक्षा निदेशालय में शुक्रवार को उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. अमित भारद्वाज और सहायक निदेशक डॉ. बी एल शर्मा से मिलकर अपना पक्ष रक्षा। डॉ. इंदु प्रकाश सिंह का कहना है कि उत्तर प्रदेश में विज्ञापन एवं चयन प्रक्रिया रुकी होने के कारण आयोग से अनुमति प्राप्त कर उच्च शिक्षा विभाग ने नियमानुसार वर्ष 2005, 2006 एवं 2008 में संविदा पर नियुक्त की थी। उच्च स्तरीय समिति के परीक्षण के बाद विनियमितिकरण नियमावली तैयार की गई तथा राज्यपाल के अनुमोदन से 2016 में विनियमितीकरण किया गया।