परिषदीय विद्यालयों के साथ माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों को मोबाइल की लत से मुक्त करने के लिए किताबों से जोड़ने की पहल की जाएगी। शिक्षा विभाग ने किताब संग बचपन अभियान की शुरूआत की है
अभियान का उद्देश्य न केवल शैक्षिक सुधार है, बल्कि उन अभिभावकों की बढ़ती चिंता को भी कम करना है जो बच्चों की मोबाइल की लत से परेशान हैं। यह पहल विद्यार्थियों में एकाग्रता, अभिव्यक्ति और पठन संस्कृति को पुनर्जीवित करने के साथ उन्हें डिजिटल आकर्षण से बाहर निकालकर विचार, ज्ञान और संवेदना की वास्तविक दुनिया से जोड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
अभियान के तहत प्रत्येक सप्ताह पुस्तक पठन दिवस का आयोजन
विद्यालयों में किया जाएगा। इस दिन पाठ्यक्रम से इतर किताबें जैसे कहानी, जीवनी, विज्ञान व बाल साहित्य पढ़ने के लिए विद्यार्थियों को दिया जाएगा।
प्रार्थना सभा में विद्यार्थियों से उनकी पसंदीदा किताबों से पूछा जाएगा। प्रतियोगिताओं में अव्वल आने वाले विद्यार्थियों को ट्रॉफी व मेडल देने के स्थान पर उनकी पसंद की किताबें दी जाएंगी। डीआईओएस ओमकार राणा ने बताया कि शासन से निर्देश मिलने के बाद विद्यालयों को आदेश पत्र जारी कर दिया गया है।
स्क्रीन में उलझता बचपन, कमजोर होती एकाग्रता : कोविड काल के बाद भले ही शिक्षा का माध्यम डिजिटल हुआ लेकिन अब मोबाइल की लत विद्यार्थियों का साथी बनने की बजाय शत्रु बनता जा रहा है।
अभिभावक रागिनी पांडेय ने बताया कि पढ़ाई के बहाने फोन लेकर बच्चे घंटों रील्स और गेम में खो जाते हैं। अब यह लत बच्चों के भविष्य को लेकर डर पैदा कर रहा है। हर घर की यही कहानी है। मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सक डॉ. अमित कुमार ने बताया कि लगातार मोबाइल, लैपटाप की स्क्रीन पर रहने से बच्चों की स्मरण शक्ति, संवाद कौशल और नींद तीनों प्रभावित होता है। उन्होंने बताया कि किताबें मन को स्थिर करती हैं। ध्यान केंद्रित करना सिखाती हैं, जो मोबाइल से नहीं मिल सकता है।

