यूजीसी नेट अभ्यर्थियों को पेपर पैटर्न से परिचित कराया


● निष्कर्षों की वैधता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया● भ्रम और गहराई की धारणा जैसी अवधारणाओें पर गहराई से स्पष्ट किया

लखनऊ, कार्यालय संवाददाता। लखनऊ विश्वविद्यालय मनोविज्ञान विभाग की अध्यक्ष डॉ. अर्चना शुक्ला के पर्यवेक्षण में हो रही यूजीसी-नेट अभ्यर्थियों के लिए कार्यशाला के चौथे दिन का पहला सत्र अधिगम और प्रत्यक्षीकरण विषय पर था। पहले सत्र की वक्ता मनोविज्ञान विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. हंसिका सिंघल क्लासिकल और ऑपरेंट कंडीशनिंग जैसे प्रमुख सिद्धांतों और शोधों का परिचय देकर अपना व्याख्यान शुरू किया।



उन्होंने अभ्यस्तता, कंडीशनिंग के दौरान मस्तिष्क में बदलाव, प्रबलन अनुसूची और स्वाद-विरुद्धता जैसी अवधारणाओं को भी शामिल किया । उन्होंने संवेदना के बुनियादी सिद्धांतों से शुरुआत की वहां से, उन्होंने अवधारणात्मक स्थिरता, भ्रम और गहराई की धारणा जैसी अवधारणाओं पर गहराई से स्पष्ट किया। उन्होंने पिछले वर्षों के नेट प्रश्नों पर आधारित एक प्रश्नोत्तरी के साथ सत्र का समापन किया, जिससे छात्रों को परीक्षा पैटर्न से परिचित होने में मदद मिली। दूसरे सत्र की वक्ता डॉ. मानिनी श्रीवास्तव ने प्रायोगिक डिज़ाइन विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने वैध अनुसंधान परिणामों को प्राप्त करने में एक अच्छी तरह से संरचित प्रयोगात्मक डिजाइन के महत्व पर जोर देकर शुरुआत की। प्रतिभागियों को विभिन्न प्रकार के प्रायोगिक डिजाइनों से परिचित कराया गया। डॉ. मानिनी ने प्रत्येक अवधारणा को वास्तविक दुनिया के उदाहरणों के साथ चित्रित किया। जिसमें निष्कर्षों की वैधता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया।