इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि वर और वधू पक्ष को शादी में मिले उपहारों की सूची बनानी चाहिए। इस तरह की सूची को दोनों पक्ष अपने-अपने हस्ताक्षर बनाकर सत्यापित भी करें। इससे दहेज संबंधित विवादों के निपटारे में आसानी होगी। कोर्ट ने राज्य सरकार से भी जानकारी मांगी है कि क्या सरकार ने दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत कोई नियम बनाया है, यदि नहीं बनाया तो इस पर विचार करे। अंकित सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान ने यह आदेश दिया।
कोर्ट ने कहा कि दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1985 कानून में यह भी नियम है कि वर एवं वधू को मिलने वाले उपहारों की सूची बननी चाहिए। इससे यह स्पष्ट होगा कि क्या-क्या मिला था। कहा कि शादी के दौरान रिश्तेदारों से मिलने वाले सभी उपहारों को दहेज के दायरे में नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने पूछा कि दहेज की मांग के आरोप लगाने वाले लोग अपनी शिकायत के साथ ऐसी सूची क्यों नहीं लगाते हैं।
कोर्ट ने कहा कि नियमावली के अनुसार दहेज और उपहारों में अंतर है। कोर्ट ने कहा, दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1985 को इसी भावना के तहत बनाया गया था कि भारत में शादियों में गिफ्ट देने का रिवाज है। भारत की परंपरा को समझते हुए ही उपहारों को अलग रखा गया है। कहा कि दहेज प्रतिषेध अधिकारियों की भी तैनाती की जानी चाहिए। लेकिन आज तक शादी में ऐसे अधिकारियों को नहीं भेजा गया। उसने ऐसा क्यों नहीं किया।