*आज न्यायमूर्ति श्री अश्विनी मिश्रा जी के इस निर्णय को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कंफर्म कर दिया है।*
इस केस में पक्ष/विपक्ष किसी भी तरह से मैं शामिल नहीं था। राघवेन्द्र पाण्डेय विपिन जी ने इस केस को पूरी ईमानदारी से प्रभारी प्रधानाध्यापक/ प्रधानाध्यापिका की तरफ से लड़ा।
अब कुछ लोग कहेंगे कि अपील के ऑर्डर को माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देकर पूरा एरियर लीजिए तो कुछ लोग नया नया जुगाड़ बताएंगे।
मैं इस मामले में बस सही न्यूज दिया हूं।
अविचल
तटस्थ उद्धरण संख्या – 2025:AHC:67382-DB
कोर्ट संख्या – 29
मामला :- विशेष अपील संख्या – 652 सन् 2024
अपीलकर्ता :- सचिव, उ.प्र. बेसिक शिक्षा बोर्ड एवं अन्य 2
प्रतिवादी :- त्रिपुरारी दुबे एवं अन्य 3
(सभी संबद्ध अपीलों के पक्षकारों के नाम, वकीलों के नाम आदि यथावत)
माननीय अश्वनी कुमार मिश्र, न्यायमूर्ति
माननीय प्रवीण कुमार गिरी, न्यायमूर्ति
1. श्री कुशमोंदया शाही, अपीलकर्ताओं के अधिवक्ता तथा श्री वी.के. सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता (सहायक अधिवक्ता – श्री आलोक कुमार गुप्ता, श्री सुधीर राणा, श्री कमल कुमार केशरवानी, श्री मन बहादुर सिंह, श्री अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी, श्री जितेंद्र कुमार यादव, श्री अनुराग शुक्ला और श्री पंकज कुमार ओझा) – प्रतिवादी/याचीगण की ओर से – को सुना गया।
2. यह विशेष अपीलों का समूह उ.प्र. बेसिक शिक्षा बोर्ड, सचिव के माध्यम से, एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए दायर किया गया है, जिसमें लंबे समय से प्रधानाध्यापक के रूप में कार्य कर रहे याचीगण को उस पद का वेतन देने का निर्देश दिया गया था। अग्रणी मामले में याची 2014 से प्रधानाध्यापक के रूप में कार्यरत थे, किंतु उन्हें प्रधानाध्यापक पद का वेतन नहीं दिया गया था। एकल न्यायाधीश ने ऐसे व्यक्ति को उस उच्च पद का वेतन पाने का अधिकारी माना जिस पर उसे कार्य करने की अनुमति दी गई है। अन्य मामलों में स्थिति लगभग समान है और उन याचिकाओं का निस्तारण त्रिपुरारी दुबे बनाम राज्य उ.प्र. (रिट-ए संख्या 18228/2022) के आदेश के अनुसार किया गया।
3. एकल न्यायाधीश के समक्ष राज्य का पक्ष State of M.P. v. R.D. Sharma (2022) 2 SCALE 398 पर आधारित था। परंतु न्यायालय ने याचिका स्वीकार की और याची को 31.05.2014 से प्रधानाध्यापक का वेतन व एरियर देने का आदेश दिया।
4. अपील में मुख्य तर्क—
(i) आरटीई अधिनियम 2009 की धारा 25 व अनुसूची के अनुसार अधिकतर विद्यालयों में छात्रों की संख्या 150 (प्राथमिक) या 100 (जूनियर हाईस्कूल) से कम है, अतः प्रधानाध्यापक का पद सृजित नहीं है।
(ii) NCTE अधिनियम 1993 की धारा 12A (संशोधन 2011) व अधिसूचना 12.11.2014 के अनुसार पदोन्नति हेतु न्यूनतम योग्यता (टीईटी उत्तीर्ण) आवश्यक है, जो याचियों के पास नहीं है।
(iii) डॉ. जयप्रकाश नारायण सिंह का निर्णय विश्वविद्यालय संदर्भ का है, इस मामले में लागू नहीं।
5–6. प्रतिवादी पक्ष ने Arindam Chattopadhyay (2013) 4 SCC 152, स्म्ट. राज किशोरी कुशवाहा (07.05.2014) व डॉ. जयप्रकाश नारायण सिंह पर भरोसा करते हुए कहा—जो व्यक्ति उच्च पद का कार्य कर रहा है, उसे उस पद का वेतन मिलना चाहिए, जब तक कि कोई वैधानिक रोक न हो। याचीगण नियुक्ति के समय पात्र थे और तब टीईटी आवश्यक नहीं था; राज्य ने भी बाद में उन्हें टीईटी कराने की व्यवस्था नहीं की।
7–11. न्यायालय ने कहा—
नियमावली 1981 के अनुसार प्रधानाध्यापक पदोन्नति हेतु 5 वर्ष का अनुभव आवश्यक है।
टीईटी नियुक्ति के समय आवश्यक नहीं था; 2014 के बाद राज्य को व्यवस्था करनी चाहिए कि पुराने शिक्षक टीईटी कर सकें।
जब तक ऐसी व्यवस्था नहीं होती, केवल टीईटी न होने के आधार पर वेतन रोका नहीं जा सकता।
12–15. आरटीई अधिनियम की धारा 25 व अनुसूची न्यूनतम शिक्षक संख्या तय करती है, पहले से मौजूद उच्च पद स्वतः समाप्त नहीं होते। राज्य ने किसी विद्यालय में पदों का पुनर्निर्धारण नहीं किया है। केवल एक वर्ष के छात्र बल के आधार पर प्रधानाध्यापक पद समाप्त करना अव्यावहारिक होगा। जब तक कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है, प्रधानाध्यापक पद जारी रहेगा।
16–17. जो सहायक अध्यापक प्रधानाध्यापक का कार्य कर रहे हैं, उन्हें अतिरिक्त कार्य का वेतन मिलना चाहिए। डॉ. जयप्रकाश नारायण सिंह का सिद्धांत लागू होगा।
18–21. एरियर अधिकतम 3 वर्ष पूर्व तक ही मिलेंगे, क्योंकि पहले वेतन न मिलने की औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की गई थी (Union of India v. Tarsem Singh के अनुसार)।
22. आदेश –
(i) संबंधित बीएसए जांचें कि याची 5 वर्ष का अनुभव रखते हैं और वास्तव में प्रधानाध्यापक का कार्य कर रहे हैं या नहीं।
(ii) यदि हाँ, तो एरियर अधिकतम 3 वर्ष पूर्व से मिलेंगे।
(iii) यथासंभव वरिष्ठ सहायक अध्यापकों को ही प्रभारी प्रधानाध्यापक बनाया जाए।
(iv) यह प्रक्रिया 2 माह में पूरी कर वेतन जारी किया जाए।
आदेश दिनांक :- 30.04.2025