राज्य सरकार ने 173 पेज की SLP फाइल किया है।
जिसका शीर्षक उत्तर प्रदेश सरकार बनाम त्रिपुरारी दुबे एवं अन्य है, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने 30 अप्रैल 2025 को आदेश दिया कि कुछ सहायक अध्यापक प्रधानाध्यापक का कार्य करने के कारण प्रधानाध्यापक का वेतन पाने के हकदार हैं।
राज्य सरकार का पक्ष (SLP में तर्क)
1. कोई चार्ज आदेश नहीं – किसी भी शिक्षक को प्रशासनिक आदेश से प्रधानाध्यापक का चार्ज नहीं दिया गया, केवल बैंक खाते के हस्ताक्षर सत्यापित होने के आधार पर वे स्वयं को कार्यरत प्रधानाध्यापक बता रहे हैं।
2. RTE Act, 2009 की धारा 25 – कम छात्र संख्या वाले विद्यालयों (कक्षा 1–5 में 150 से कम या कक्षा 6–8 में 100 से कम छात्र) में प्रधानाध्यापक की आवश्यकता ही नहीं।
3. वरिष्ठता विवाद – अधिकांश विद्यालयों में वरिष्ठता सूची विवादित है, इसलिए पदोन्नति रुकी हुई है।
4. TET अनिवार्यता – NCTE के अनुसार TET उत्तीर्ण होना प्रधानाध्यापक पद के लिए आवश्यक है, जबकि वादकारी शिक्षक TET उत्तीर्ण नहीं हैं; यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
5. कानून में प्रावधान नहीं – U.P. Basic Education Act, 1972 में इंचार्ज/ऑफिसिएटिंग प्रधानाध्यापक नियुक्ति का कोई प्रावधान नहीं है, जबकि हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय संबंधी एक पुराने फैसले (Jai Prakash Narayan Singh) को गलत तरीके से लागू किया।
हाईकोर्ट का दृष्टिकोण
अगर कोई व्यक्ति उच्च पद का कार्य कर रहा है तो उसे उस पद का वेतन मिलना चाहिए।
विद्यालय बिना प्रधानाध्यापक के नहीं चल सकता, इसलिए इंचार्ज अध्यापक को वेतन मिलना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट में मांगी गई राहत
हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया जाए।
अंतरिम तौर पर आदेश के पालन पर रोक लगाई जाए, ताकि वेतन भुगतान और अवमानना कार्यवाही रुके।
यह मामला मूलतः प्रधानाध्यापक का वेतन पाने के अधिकार, RTE Act की बाध्यता, TET योग्यता, और वरिष्ठता विवाद से जुड़ा है।
अविचल