प्राइमरी स्कूल में मिली 31 खेल किट, प्रधान शिक्षक निलंबित,बीईओ व संकुल को से दो दिन के भीतर स्पष्टीकरण तलब


 प्राइमरी स्कूल में मिली 31 खेल किट, प्रधान शिक्षक निलंबित,बीईओ व संकुल को से दो दिन के भीतर स्पष्टीकरण तलब 

उन्नाव जिले में खेल किट वितरण में गड़बड़ी का मामला फिर चर्चा में आ गया है। शुक्रवार को बीएसए ने असोहा के प्राथमिक विद्यालय रैकड़ का निरीक्षण किया तो यहां एक दो नहीं बल्कि 31 खेल किट रखे हुए पाए गए। भ्रष्टचार का मामला मानते हुए बीएसए ने प्रधान शिक्षक को निलंबित कर दिया। बीईओ से दो दिन में स्पष्टीकरण मांगा है।



बीएसए संजय तिवारी को परिसर व कक्षाओं में गंदगी मिली। अतिरिक्त कक्ष में खेलकूद की 31 किट रखी मिलने पर उनका माथा ठनका। पूछताछ में प्रधान शिक्षक अनुज कुमार ने बताया कि न्याय पंचायत समन्वयक प्रावि महराजखेड़ा संदीप ने तीन दिन पहले 34 किटें उतरवाई थीं। इसमें तीन किट भेजी जा चुकी हैं। बड़ी संख्या में किट के पाने के मामले को भ्रष्टाचार मानते हुए बीएसए ने प्रधान शिक्षक को निलंबित रायपुर असोहा में सम्बद्ध कर दिया है। प्रकरण की जांच बीईओ औरास को सौंपी है। बीईओ के साथ न्याय पंचायत समन्वयक से स्पष्टीकरण तलब किया है।


बीईओ बीमा एजेंसी से भी रखते है नाता 


सूत्र बताते हैं कि स्कूलों का निरीक्षण कर वहां पर मिलने वाली कमियों पर शिक्षकों को कार्रवाई से बचने के लिए बीमा पॉलिसी का ऑप्शन देते हैं। पॉलिसी न कराने पर कार्रवाई की दायरे में लाते हैं। 


और ब्लॉकों में भी वसूली जारी 


और भी कई ब्लॉक है जहां शिक्षकों से खेल किट में हिस्सेदारी ली जा रही है। संकुल होता है। के सहारे यह शिक्षकों से एक हजार से दो हजार रुपये तक वसूली कर रहे हैं। इन ब्लॉकों में भले ही शिक्षक खेल किट स्वयं ले रहे हो मगर बीईओ के लिए रकम तय है, जबकि बीएसए साफ कह चुके हैं कि ऐसी हरकत करने वाले बीईओ की शिकायत शिक्षक उनसे करें यह होता है खेलः बच्चों के खेलकूद के सामान के लिए प्राथमिक विद्यालय को पांच हजार और जूनियर हाईस्कूल को 10 हजार रुपये मिलते हैं। सभी स्कूल की विद्यालय प्रबंध समिति को स्वयं सामान खरीदना होता है। संयुक्त एसएमसी खाता होता। केवल इन्हें ही इस खाते में खेल किट व अन्य मदों में आने वाली रकम खर्च करने का अधिकार होता है। मगर बीईओ, समन्वयक या कोई और जिम्मेदार कमीशनबाजी के लिए एक ही एजेंसी से सामान खरीदने को मजबूर करते हैं। एजेंसी से सामान इकट्ठा मंगवाकर डंप करा लिया जाता है, उसके बाद उसे स्कूलों को बेचा जाता है। रैकड़ स्कूल में भी ऐसा ही कुछ हुआ।