विलुप्त हो रहे देशज खेलों को जानेंगे नौनिहाल



प्रयागराज (प्रमोद यादव)। हरा समंदर गोपी चंदर, बोल मेरी मछली कितना पानी... कुछ याद आया। यह ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों और बाग बगीचों में खेला जाने प्रचलित खेल घघ्घो रानी की पंक्तियां हैं। नई पीढ़ी के बच्चे इस खेल से परिचित नहीं हैं। इस तरह के कई और खेल विलुप्त हो रहे हैं। प्रदेश की परंपरागत पहचान वाले ऐसे 20 खेलों से जुड़ी जानकारियां जुटाकर राज्य शिक्षा संस्थान ने देशज खेल नामक पुस्तक तैयार कर दी है। अगले कुछ महीनों में इसकी छपाई हो जाएगी तो इसे स्कूलों में भेज दिया जाएगा।

बदले दौर में नई पीढ़ी के बच्चे परंपरागत खेलों को भूलते जा रहे हैं। यह खेल प्रदेश की पहचान हैं, पर मोबाइल और इंटरनेट संस्कृति ने नई पीढ़ी को इनसे दूर कर दिया है। इससे बच्चों का मानसिक व शारीरिक विकास प्रभावित हो रहा है। इसलिए पिछले वर्ष स्कूली शिक्षा के तत्कालीन महानिदेशक विजय किरण आनंद ने पुस्तक तैयार करने की जिम्मेदारी दी थी।