इस उच्च प्राथमिक विद्यालय में बच्चे बना रहें केले के छिलके से जैविक खाद


सरकारी स्कूलों में न्यू एजुकेशन पॉलिसी (NEP) के तहत किचेन गार्डेन 

(kitchen garden) बनाये जाने के निर्देश शासन की ओर से पहले ही जारी किए जा चुके हैं। जिसके तहत कई सरकारी विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन के लिए ताजी हरी सब्जियां उगाने व खेती के गुर बच्चे तो सीख ही रहे हैं , लेकिन अब बेहतर पौधे कैसे हों और उनकी कीटों से रक्षा कैसे की जाये इसके लिए भी सरकारी विद्यालय के बच्चों ने जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया शुरू की है। 



राजधानी के बीकेटी ब्लाक के पूर्व माध्यमिक विद्यालय मामपुर बाना (Pre Secondary School Mampur Bana) में बच्चों ने पढ़ाई के साथ ही अनोखा प्रयोग करते हुए जैविक खाद बनाना शुरू किया है। इस खाद से जहां पौधे स्वस्थ्य रहेंगे वहीं गुणवत्ता पूर्ण सब्जियां भी उगाना आसान होगा। खाद को बनाने के लिए बच्चे स्कूल में मध्यान्ह भोजन के तहत बटने वाले फलों के छिलकों का प्रयोग कर रहे हैं। इसमें केले के छिलके का ज्यादा प्रयोग हो रहा है। 

थ्योरी से बढ़े प्रैक्टिकल की ओर, मिल गई सफलता
विद्यालय में कचरा एक गंभीर विषय पर बच्चों को जानकारी देते हुए सहायक अध्यापिका प्रीति ने पूरी विद्यि के बारे में पढ़ाया। जिसका अनुश्रवण करते हुए बच्चों ने प्रैक्टिकल किया तो सफलता मिल गई। पिछले करीब एक साल से ये बच्चे खाद को बना रहे हैं। इस खाद का प्रयोग विद्यालय में लगे पेड़ पौधो में भी किया जा रहा है। 


ये है प्रकिया, नीम का पत्ती का भी प्रयोग
सोमवार को एमडीएम में प्राप्त केलों के छिलकों को एकत्रित करके बच्चे छोटे छोटे टुकड़ों में काट लेते हैं। गभग एक हफ्ते तक छिलकों को सुखाने के पश्चात इमामदास्ते में फिर सूखे छिलकों की कुटाई की जाती है। इस प्रकार प्राप्त जैविक खाद जिसमे नाइट्रोजन, पोटेशियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम होता है यदि समान मात्रा में नीम की सूखी हुई पत्तियों का चूरा मिलकर प्रयोग किया जाए तो कीटों से भी पौधों की रक्षा होती है। 


आज के पर्यावरण को समझते हुए बच्चों को पौधों के जन्म से लेकर उनकी रक्षा के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी है। विद्यालय में ये प्रयोग सरहानीय है शिक्षा के साथ-साथ बच्चों के लिए इस तरह की गतिविधि महात्वपूर्ण होती हैं। प्रीती शुक्ला खंड शिक्षा अधिकारी ब्लाक बीकेटी  


विद्यालय में बच्चों को शैक्षिक गतिविधि के साथ-साथ प्रैक्टिकल भी बहुत जरूरी होता है। बच्चों को सबसे पहले जैविक खाद के बारे में पढ़ाया गया उसके बाद उन्होंने अपना प्रयोग शुरू किया तो सफलता मिल गई करीब एक साल से ये क्रम जारी है। मीनाक्षी प्रधानाध्यापिका पूर्व माध्यमिक विद्यालय मामपुर बाना