लखनऊ : अक्षय पांडेय ने अपनी पढ़ाई संस्कृत शिक्षा बोर्ड से की है। वह लखनऊ में पासपोर्ट बनवाने गए और उन्होंने अपने प्रमाण पत्र दिखाए तो कहा गया कि इस बोर्ड के सर्टिफिकेट मान्य नहीं हैं। मजबूरन उन्हें निरक्षर लिखवाकर पासपोर्ट बनवाना पड़ा। इसी तरह वाराणसी के बापू नंदन सेना में भर्ती होने के लिए पहुंचे तो वहां भी सर्टिफिकेट और मार्कशीट अमान्य बताकर बाहर कर दिया गया।
यह कष्ट सिर्फ दो छात्रों की बात नहीं बल्कि संस्कृत शिक्षा बोर्ड के सभी छात्रों का कष्ट है। केंद्र सरकार की नौकरियों और विभागों में यहां के छात्रों के प्रमाण पत्र और मार्कशीट को अमान्य बताकर बाहर कर दिया जाता है। केंद्र सरकार के विभाग इसको नहीं मानते। यह हाल तब है जबकि यह प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित बोर्ड हैं और सरकार इसको बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। नए राजकीय संस्कृत विद्यालय खोले जा रहे हैं और रोजगारपरक शिक्षा के लिए नए डिप्लोमा कोर्स शुरू किए जा रहे हैं। दूसरी ओर केंद्र सरकार के ही विभाग यहां के सर्टिफिकेट को नहीं मान रहे।
सरकारी बोर्ड तो अमान्य क्यों: उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. विनोद मिश्र कहते हैं कि बोर्ड सम्पूर्णानंद विश्वविद्यालय से जिन्होंने पढ़ाई की है, उनकी डिग्री और सर्टिफिकेट तो मान्य हैं। जब से बोर्ड बना है, तब से यहां के छात्रों के सर्टिफिकेट को केंद्र सरकार के विभाग नहीं मानते। यह प्रदेश सरकार का गठित बोर्ड है। इसे मानना चाहिए। संस्कृत शिक्षा बोर्ड की पाठ्यक्रम समिति के सदस्य और संस्कृत भारती न्यास के अध्यक्ष जेपी सिंह कहते हैं कि केंद्र सरकार को भी इस बारे में पत्र लिखा गया है। जल्द ही सभी वहां से स्वीकृति मिलने की उम्मीद है।
'जल्द होगा समस्या का समाधान'
इस बारे में माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. महेंद्र देव कहते है कि बोर्ड के सर्टिफकेट मान्य हैं केंद्र सरकार ने इस बारे में अपनी वेबसाइट पर अपडेट नहीं किया है। इस वजह से दिक्कत आ रही है। केंद्र सरकार से हमारे अधिकारियों ने बात भी की है। जल्द ही समस्या खत्म हो जाएगी। महानिदेशक स्कूल शिक्षा विजय किरण आनंद कहते हैं कि यह मामला आया था। हमारे अधिकारियों ने केंद्र सरकार से इस बारे में बात भी की है। कुछ अन्य राज्यों के बोर्ड के सर्टिफिकेट मान्य नहीं है। यूपी के संस्कृत बोर्ड के सर्टिफिकेट मान्य हैं।
कहां हुई चूक
दरअसल, संस्कृत शिक्षा किया गया था। इससे पहले इंटर तक के भी सभी विद्यालय सम्पूर्णानंद विश्वविद्यालय से सम्बद्ध होते थे। तब से 23 साल हो गए। बोर्ड परीक्षाएं कराता रहा सर्टिफिकेट देता रहा। अधिकारियों ने इतने साल में ये जहमत नहीं की कि केंद्र सरकार के मान्यता प्राप्त बोडों की सूची में दर्ज करवाया जाए। जब छात्रों को पासपोर्ट बनवाने या फिर केंद्र सरकार की नौकरियों से रिजेक्ट होने पर दिक्कत आई तो इसको लेकर शिकायतें भी की गई लेकिन उसके बाद भी ठोस प्रयास नहीं किए गए। अब लगातार मामला उठने लगा। हाल ही में बोर्ड की बैठक में शिक्षाविदों ने यह मामला उठाया तब अधिकारी यह बात आ रही है कि केंद्र सरकार ने बोर्ड की वेबसाइट पर इस इसे मान्य बोर्डों के तौर पर अपडेट नहीं किया है। अब इसे अपडेट कराने के प्रयास हो रहे हैं लेकिन ये काफी पहले हो जाने चाहिए थे। छात्रों ने जो अब तक नुकसान उठाया है, वह न उठाना पड़ता।