28 July 2025

स्वदेशी इंजन से एक लीटर में 176 किमी चलेगी बाइक

 प्रयागराज। जुनून अगर हो तो मंजिल खुद रास्ता बना लेती है। यही साबित कर रहे हैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुरा छात्र शैलेंद्र सिंह गौर, जिन्होंने ऑटोमोबाइल की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव का बीड़ा उठाया है। करीब दो दशक की कठिन मेहनत के बाद शैलेन्द्र ने एक सिक्स स्ट्रोक इंजन बनाया है। उनका दावा है कि मौजूदा तकनीक को पीछे छोड़ते हुए यह इंजन 176 किमी/लीटर का जबरदस्त माइलेज देता है। भारत सरकार से उनकी इस तकनीक को दो पेटेंट मिल चुके हैं।


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कानपुर नगर के मूल निवासी शैलेंद्र वर्तमान में झूंसी में रहते हैं। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1983 में बीएससी (पीसीएम) की डिग्री हासिल की। 2007 में टाटा मोटर्स में नौकरी लगी लेकिन काम नहीं किया। उन्होंने एमएनएनआईटी के मैकेनिकल विभाग की प्रयोगशाला में छह महीने तक प्रो. अनुज जैन के साथ काम सीखा। इसके बाद आईआईटी-बीएचयू की प्रयोगशाला में भी काम सीखा।


जुनून में शैलेंद्र ने अपने किराए के घर को ही प्रयोगशाला में तब्दील कर दिया। खेत, मकान और दुकान बेचकर उन्होंने अपने इस सपने को जिंदा रखा। उनका दावा है कि सिक्स-स्ट्रोक इंजन मॉडल पारंपरिक इंजनों की तुलना में तीन गुना ज्यादा दक्ष है और लगभग 70 प्रतिशत तक ऊर्जा का उपयोग करने में सक्षम है। दावा किया कि वह अपनी अनूठी बाइक का प्रदर्शन एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में कर चुके हैं जिसमें एक लीटर में 120 किमी बाइक चलाकर दिखाई थी। उन्होंने कहा कि यह सिक्स-स्ट्रोक इंजन किसी भी आकार या ईंधन वाले वाहन में फिट किया जा सकता है। चाहे वह बाइक हो, कार, बस, ट्रक या पानी का जहाज। य


ह न केवल माइलेज बढ़ाता है बल्कि प्रदूषण भी कम करने में सक्षम है।


प्रभावशाली परिणाम और परीक्षण

शैलेन्द्र ने 100 सीसी टीवीएस बाइक (2017 मॉडल) पर इस तकनीक का परीक्षण किया। परिणाम चौंकाने वाले रहे। बाइक ने 50 मिली पेट्रोल में 35 मिनट तक लगातार चालू रहकर 176 किमी/लीटर का माइलेज दिया। वही बाइक जो पहले 12.40 मिनट ही (खड़ी कर के चालू) स्थिति में चलती थी। इससे साफ है कि नया इंजन पारंपरिक तकनीक की तुलना में कई गुना अधिक सक्षम है।


भारत सरकार से तकनीक को मिले दो पेटेंट


गौर को इस तकनीक के लिए दो पेटेंट मिल चुके हैं, जबकि कुछ और प्रक्रियाधीन हैं। उनका दावा है कि यह इंजन टिकाऊ, पर्यावरण के अनुकूल और कम प्रदूषणकारी है। कार्बन मोनोऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैसें लगभग नगण्य मात्रा में उत्सर्जित होती हैं। अब उन्हें जरूरत है कि सरकार, निवेशक और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के बड़े घराने आगे आएं, ताकि इस तकनीक को प्रोडक्शन लेवल तक पहुंचाया जा सके और इसका लाभ आम जनता तक पहुंचे।